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________________ जिन नवकारका काउस्स लोगस्स वा भाषादिकी सज्झाय भयदेवमूरि, श्रेष्ठ, कनक, शंख, मूंगीये। मरकतपन्ना,मेघके,सरखे(वर्णवाले),विनष्टहुए,मोहवाले सित्तर (युक्त),शत(सौ१७०)कुं,जिनेश्वरोंके । सब, वरकणयावर,कणय,संख,विहुम। मरगय,घण, सन्निहं, विगय, मोहं।। “सतरि, सयं, जिणाणं। सव्वा. १७० का देवोंसे पूजित, बांदताहूं ।। | एक एक खमासमणेसे आचार्य मिश्रं उपाध्यायमिश्रं सर्वसाधून खमासमणा देके इच्छाकारेण संदिसहना मर,पूइय, वद ॥१॥ भगवन् देवसियपायच्छित्तचिसोहणत्थं काउस्सग्गकरूं इच्छं देवलिय० करेमि काउस्सग्ग अन्नस्थ०४ र 5 लोगस्स या १६ नवकारका काउस्सग्ग करके लोगस्स कहे खमासमणा देके इच्छा० सं० भ० खुद्दोबद्दव ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं - इच्छं खुद्दोव० करेमि काउस्सगं अन्नत्थ० ४ लोगस्स वा १६ नवकारका का उसग्ग करे पालके प्रगट लोगस्स कहे खमासमणा० इच्छा सं०भ०सज्झाय संदिसाउं खमा०च्छा०सज्झाय करूं नवकार भाषादिकी सज्झाय करे। नवकार खमा०इच्छा०सं० भगवन् चैत्यवंदन कर (जो)श्रीसेढी,बदीके,किनारे,नगरमें श्रेष्ठ,श्रीस्तंभनपुर रूप,सुमेरु उपर । श्रीमानपूज्य, अभयदेवमूरि, पंडितराजने,अच्छीतरह रोपाहै । स्तंभन श्री सेढी,तटिनी, तटे,पुरवरे,श्रीस्तंभने, स्वर्गिरौ।श्रीपूज्या,ऽभषदेवसूरि ,विबुधाऽधीशैः,समारोपितः। १ नीलरत्न-पन्ना ! २ खंभात । ३ देवोंके अधीश (इंद्र) तुल्य । ४ स्थापाहै । * यह श्री जिनवाल्लभ सृरिजीके गुरु तथा श्री जिनदत्त सूरिजीके दादागुरु श्रीअभयदेवसरिजी १५५ स्तंभन पार्श्वनाथ प्रतिमा प्रगट करनेवाले और नवअंग सूत्रोंकी टीका करनेवाले किस गुरुके शिष्यथे तथा किस गच्छको शोभानेवाले हुए यह तपगच्छके उपाध्याय श्रीशा सोमधर्मगणि मुसाधु सत्यवादी मारामृषाके त्यागी चे उपदेश सप्ततिका ग्रंथमें लिखते है कि-"पुरा श्रीपत्तने राज्यं, कुळगे भीमभूपती। अभूवन भूतलेख्याताः, श्री जिनेश्वरमृरयः शमूरयोऽभयदेवाख्या-स्तेषां पट्टे दिदीपिरे। येभ्यः प्रतिष्ठामापन्नो,गच्छः खरतराभिधः ।। श्रीदर्शवकालिक पर्युषण कल्पसूत्रादि सिद्धांत समाचारी, खरेतरे वर्तनसे खरतर विरुद श्री जिनेश्वरसूरिजीसे प्रसिद्ध हुआ इसके पहले श्री जिनेश्वरमरिजीके गुरु श्री वर्धमानसूरिजीके या कffifthi55555544फ पार्श्व चै त्य वंदना Jan Education n ational For Personal Private Use Only Shorary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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