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________________ 15555 35555555555555555555555 पवित्र। पढो, मुणो, स्वाध्यायमें, और, ध्याओ, चित्तमें। करो, जाणो, विघ्नकुं, जिससे, नाश करो, जल्दी ।१६। पवित्तं । पढह,सुणह, सिज्झाए, अ.झाएह,चित्ते। कुणह,मुणह, विग्धं, जेण, घाएह,"सिग्धं १६ इसतरह,विजया(राणी),जितशत्रु(राजा)के, पुत्र,हे श्री अजित, जिनेश्वर!। तथा,अचिराराणी,विश्वसेनराजाके,पुत्र,पांचमे, चक्रीश्वर । # 'इय, विजया, जियसत्तु,पुत्त,सिरिअजिअ,जिणेसर! तह,अइरा,विस्ससेण,तणय.पंचम.चक्कीसर । म तीर्थंकर,सोलमे,हेशांति(जिन) ! जिनवल्लभ(मूरिजी)ने,सम्यक्स्तवेहुए । करो,मंगल, मेरे,हरो दूरकरो, पापकुं, सपही, स्तवतेहुओंके ।१७ तित्थंकर,सोलसम, संति ! 'जिणवल्लह ,संथु। कुरु, मंगल, मम,हरसु.दुरिय,मखिलंपि,धुणंतहा? Fix देवाधिष्ठितजैनशासनउन्नतिकारक प्रभाविकमूलजिनपडिमाकी अंगपूजाकरती युवान ऋतुवंती स्त्रीको ही निषेधसे सर्वमान्य श्रीजिनदत्तमरिजी उनके गुरु कल्याणवादी त्रिशलाकूखे वीरगर्भहरण संक्रामण गर्भधारण अकल्याणक नीच निंद्य विवादको हटानेवाले जिनवाहभसरिजी पहलेचैत्यवासी श्रीजिनेश्वरमरिजीके शिष्यथे, इनगुरुका चैत्यवासादिशिथिलाचार जानके पचमहात्रतादि शुद्ध चारित्रकी उपसंपदा प्राप्ति के लिये उनगुरुकी आज्ञा लेके सुंदर चारित्र संपत्तिवाले सुज्ञानी विशेष प्रसिद्ध सद्गुरु नवांग टीकाकार खरतरगच्छ. के नायक श्रीमद् अभयदेवसरिजीके शिष्य श्री जिनवाहभसरिजी हुए, इसीलिये खरतरगच्छनायक श्री जिनवाहभमरिजीकृत प्रश्नोत्तरकशितक' में श्री जिनवाइभसूरिजीनेही) अपने सद्गुरु कौन ? इस प्रश्नके उत्तरमें श्री जिनवल्लभसूरिजी ही लिखते है कि-"के वा सद्गुरवोऽत्र चारुचरणाः श्रीमुश्रुता विश्रुताः, श्रीमदभयदेवाचार्याः"(स्तो० र० वि० भा० पत्र ३२) सूक्ष्मार्थ विचार सार्द्धशतक' टीकाकार चित्रवालगच्छके श्री धनेश्वरसरिजीभी लिखते है कि... जिणवल्लहगणिरइयं-श्री जिनवल्लभगणिनामकेन मतिमता सकलार्थसंग्राहिस्थानांगाधंगोपांगपंचाशकादिशात्रवृत्तिविधानावातावदातकीर्तिसुधाधवलितधरामंडलानांश्रीमदऽभयदेवमरीणां शिष्येण, कर्मप्रकृत्यादिगंभीरशास्त्रेभ्यः समुदधृत्य रचितमिदं" यही सत्य अभिप्राय छुपाके मिथ्या निंदा झूट बोलना महापापहै । Shishit For Personal Pre Use Only pinelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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