________________
15555555555555555555
सोंचागयाहै, स्तुतिरूप, जलोंसे,मोक्षरूप,फलोंसे,देदीप्यमानहै,फणारूप,पत्रवालाहै। पार्थ(प्रभु), कल्पवृक्ष, वह, मेरे, पूर्णकरो, हमेशां,
संसिक्तः, स्तुतिभि, लैः, शिव,फलैः स्फुर्जत् ,फणा,पल्लवः।पार्श्व:,कल्पतरुः, स, मे प्रथयता, नित्यं । ___ मनोवांछित ।। मनपोडा,शरीरपीडाको,हरनेवाले, देव । जीरावली(गाम)के मुकुटमणि। पार्धनाथ, जगत्केनाथ । नमनेवालोंके, मनोवांछितं ॥१॥ आधि, व्याधि, हरो, देवो। जीरावल्ली,शिरोमणिः ॥ पार्श्वनाथो, जगन्नाथो । नत,
मालिक,मनुष्योंको,कल्याणके लियेहो।२।। नाथो, नणां श्रिये ॥२॥ | नमुथ्थुणं० से लेके जयवीयरायः आभवमखंडा मुधी पूरी है सो कहे खमासमणा देके। पूर्वजोंका चंद्रकुल कोटीगण बृहद्गच्छ वज्रशाखा वनवासीगच्छ कहने में आताथा इसीलिये नवांगसूत्र टीकाकार श्री अभयदेवरिजी महाराजने श्रीभगवती सूत्रकी टीकाके अंतमें अपने शिष्य और गुरुभाइ काकागुरु गुरु दादागुरुके पूर्वजोंका चंद्रकुल उसमेभी जो पाटपरंपरा है वही दिखलाइ है कि-"चांद्रे कुले सदनकक्षकल्पे, महागुमो धर्मफलप्रदानात् । छायान्वितः शस्तविशालशाखः, श्रीवर्द्धमानो मुनिनायकोऽभूत् ।। तत्पुष्पकल्पी विलसद्विहार सद्गंधसंपूर्णदिशौक समंतात्। बभूवतुः शिष्यवरावऽनीचत्तिश्रुतज्ञानपरागवंतौ ।२। एकस्तयोः मूरिवरो जिनेश्वरः, ख्यातस्तथाऽन्यो भुवि बुद्धिसागरः। तयोविनेयेन विबुद्धिनाप्यलं, वृत्तिःकृतैपाऽभयदेवमूरिणा ।३। तयोरेव विनेयानां, तत्पदं चानुकुर्वतां। श्रीमतां जिनचंद्राख्य सत्यभूणां नियोगतः। श्रीमजिनेश्वराचार्य, शिष्याणां गुणशालिनां । जिनभद्रमुनींद्राणा,मस्माकं चांघिसेविनः ।। यशश्चंद्रगणेाढ, साहाय्यात्सिद्धिमागता। परित्यक्ताऽन्यकृत्यस्य, युक्तायुक्तविवेकिनः ।। यह मूल पाट परंपरा सरतर पट्टावली ग्रंथोमेंही मिलती है अन्यमें नहीं ।
ममममम15555555555
॥२२॥
Jain Education n
ational
For Personal Private Use Only
www.jainelibrary.org