________________
श्री स्तंभनक(पुर)में,रहेहुए, पार्श्वनाथ। स्वामीका, संपूर्ण, तीर्थोके, स्वामी। (स्वस्व तीर्थोकी,अच्छीउन्नतिके,कारणभूत । सुर, सिरि सिरिथंभणय, ठिय, पास। सामिणो,'ऽसेस,तित्थ,सामीणं ॥ तित्थ, समुन्नइ, कारणं । सुरा,
भण असुरोंके,और, सब के ॥ इन, म, स्मरणकेलिये। कायोत्सर्ग, करताहूं, शक्तिमुजब। भक्तिसे,गुणमें,सुस्थितरहे। गाथा २
सुराणं, च, सव्वसि ॥१॥ एसि, महें, सरणऽत्थ।"काउस्सग्गं,कमि, सत्तीए॥भतीए, गुण,सुठ्ठिय। संघकी, अच्छीउन्नतिके. निमित्त ।। ।
बंदणवत्तियाए. अन्नत्थ० ४ लोगस्स वा १६ नवकारका ९९ संघस्त, समुन्नइ.निमित्तं ॥२॥ |
काउस्सग्ग करे पालके प्रगट लोगस्स कहे । श्री जिनक श्रीखरतर गच्छ शृंगारहार, जंगम जुगप्रधान, भट्टारक, दादाजी, श्रीजिनदत्तसूरिजी चारित्र शल मूरि
क चुडामणि आराधवा निमित्तं करेमि काउस्सग्गं । अन्नत्थ० ५ नवकार काउस्सग्ग प्रगट लोगस्स। जी काउ- श्रीखरतर गच्छशंगारहार.जंगम जगप्रधान.भट्टारक.दादाजी श्रीजिनकशलसरिजी चारित्र चडामणि स्सग्ग
आराधवानिमित्तं करेमि काउस्सग्गं। अन्नत्थ०४नवकार काउस्सग्ग प्रगट लोगस्स खमासमणा देके इच्छा०सं०भ० चैत्यवंदन करूं। १००॥
चार कषायरूप,पतिमल्ल(शत्रु)को,छेदनेवाले। दुर्जया,कामदेवके,वाणोंको,तोडनेवाले । रसयुक्त ,प्रियंगु जैसे,वर्णवाले,गजजैसी, चालवाले। चउक्कसाय चै- 'चउक्कसाय, पडिमल्लु, ल्लूरणु। दुजय,मयण, बाण,मुसुमूरणु ॥सरस, पियंगु, वण्णु, गय, गामिन। त्य वंदन मुश्किलसे जीताय वैसे । २ नवीन । ३ नामक वृक्षके तुल्य नीले रंगवाले ।
दत्त कु
9555555555555555555Y
Jain Educatio
nal
For Personal Private Use Only
brary.org