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________________ के स्तवनेमें ।। तोभी, निश्चय,बहुमानपूर्वक,उल्लसित, भक्तिके,समुदायसे। गुणके, कणकाभी, कीर्तन करूंगा, चिंतामणिकी तरह। थुणेउं॥२॥'तहवि. हु,बहुमाणु, ल्लासि, भत्ति, भिरेण। गुण,कणमवि, कित्तेहामि, चिंतामणिव्व ॥ के संपूर्ण, अथवा, अचिंत्या, अनंत, सामर्थ्य से, इनकी। फलेंगे, जल्दी, सब, वांछित, निश्चय, मेरे । संपूण, अल, महव, अचिंता,ऽणंत,सामथओ, सिं। फलिहइ, लहु, सव्वं,वंछियं,णिच्छियं, मे ॥३॥'सयल, जगत्के, हितकर्ता, नाम मात्रसे, जिनके। दूर होतेहैं, जल्दी,दुष्ट(और)अनिष्ट,हाथियोंके, थोक । नमनेवाले,देवोंके,मुकुटोंसे,घसाएहुए, #जय, हियाणं, नाममित्तेण, जाणं। विहडइ, लहु, दुछाऽनिठ्ठ,दोघट्ट,थडें ॥ नमिर, सुर,किरीडु, ग्घिट्ट, चरणकमलवाले। हमेशां, अजित(तथा)शांति,उन, जिनेंद्रोंको, दन करताहूं ।४। पसरतीहै, श्रेष्ठ,कीर्ती, बढतीहै,शरीरकी,दीप्ति(कांति । पायारविंदे।"सयय, मजिय संती, ते."जिणिंदे, भिवंदे॥४॥ पसरइ, वर कित्ती, वढए, देह, दित्ती। विलसतेहै, भूमिमें, मित्रता, होतीहै, अच्छी प्रवृत्ति । स्फुरतीहै , उत्कष्ट, तृप्ति, होताहै, संसारका,छेद(नाश)। जिनयुग के, कविलसइ, भुवि,मित्ती, 'जायए, "सुप्पवित्ती। फुरइ, परम,तित्ती, होइ, संसार,छित्ती॥ 'जिणजुअ, चरणोंकी भक्तिमें,निश्चय,अचिंत्य मोटी,शक्तिहै(जिससे)। मनोहर,पगोंके,प्रचारवाला,बहुत, मुंदर,शरीरके,मरोडवाला। प्रगट,अत्यंत रसके, ॐ पय, भत्ती, 'ही, अचिंतोरु, सत्ती ॥५॥'ललिय, पय, पयारं भूरि,दिव्वं,ऽग, हारं। फुड,घण, रस, १ चितवनमें नहीं आसके वैसी । २ अजित-शांति प्रभुकी। ३ भोगवते हैं। ४ होतीहै। ५ दूसरे सोलमे दो तीर्थकरों । ६ स्थापन। Jain Education international For Personal Private Use Only wrow.ininelibrary.orm
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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