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कीधी चित्त थिर राखी ॥ द्रव्यभाव बिहं भेदे कीनी, जीवाभिगम छे साखी रे॥मः ॥श्री० ॥९॥ में इत्यादिक बहु आगम साखे, कोइ शंका मत करजो॥ जिनप्रतिमा देखी नित नवलो, प्रेम घणो चित्त धरजो रे॥ भ०॥ श्री० ॥१०॥ चिंतामणिप्रभु पास पसाये, सरधा होजो सवाई॥ श्रीजिनलाभ सुगुरु नपदेशे, श्रीजिनचंद सवाई रे भ. श्री ॥११॥ वरकणय संख० इत्यादि आगे लिखा बोले ।
उल्लासमान, चरणोंके,नखोंसे, निकलीहुइ,प्रभारूप,दंडेके, बहानेसे,प्राणीओंको। वांदनेवाले, दिखातेकी, तरह, प्रगट, निर्वाणके, लघु अ- 'नल्लासि, कम,नख्ख,निग्गय, पहा,दंड, च्छलेणं, ऽगीणं। वंदारूण, दिसंत, इव्व, पयर्ड, निव्वाण । जित शा-मार्गकी, श्रेणीकुं। कुंदफूल,चंद्रजैसे,ऊजले,दांतोंकी,कांतिके, मिषसे, निकलेहुए,ज्ञान अंकुरोंके। उत्केरसमूहवाले,दोनोंही,दूसरे,(तथा)सोलमें
मग्गा,ऽऽवलिं॥ कुंदि,दु, जल, दंत, कंति,मिसओ,नीहंत,नाणंऽकुरू। केरे, 'दोवि.दुइज्ज,सोलस. जिनेश्वरोंको, स्तनूंगा, क्षेमके करनेवाले ॥१॥ अंतिम,समुद्रके,पाणीकुं,जो मनुष्य,मापलेवे, अंजलीयोंसे। कल्पांतकालके, पवनकुं, जो नर, जिणे,थोस्सामि, खेमंकरे॥१॥चरम,जलहि,नीरं. जो, मिणिज्जं,ऽजलीहिं । खय समय,समीरं, "जो, ॥५॥
जीतलेवे, चालसे। संपूर्ण, आकाशतलकुं,अथवा, उल्लंघ जाय,जो देव, पगोंसे । अजित(नाथ कुं,अथवा.शांति(नाथ)कुं.वह, समर्थ है, जिणिज्जा, गइए॥सयल,नहयलं, वा, लंघए, जो,पएहिं ।"अजिय,महव,संति, सो,"समत्थो,
ति स्तव
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