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________________ फफफफ भविका श्री जिनबिंब जुहारो, आतम परम आधारो रे ॥ भ० श्री ० ॥ जिनप्रतिमा जिन सारखी जाणो, न करो शंका काड् ॥ आगम वाणीने अनुसारें, राखो प्रीति सवाई रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥ ॥१॥ जे जिनबिंब स्वरूप न जाणे, ते कहियें किम जाणे || भूला तेह अज्ञानें भरिया नहिं तिहा तत्व पिछाणे रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥२॥ अंबड श्रावक श्रेणिकराजा, रावण प्रमुख अनेक | विविधपरें जिन भगति करता. पाम्या धर्म विवेक रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥३॥ जिन प्रतिमा बहु भगतें जोता. होय निश्चय नृपगार ॥ परमारथ गुण प्रगटे पूरण, जो जो आर्द्रकुमार रे ॥ भ० ॥ श्री० ||४|| जिनप्रतिमा आकारें जलचर, छे बहु जलधि मझार ॥ ते देखी बहुला मत्स्यादिक, पाम्या विरति प्रकार रे ॥ ० ॥ श्री ० ||१२|| पाचमे अंगे जिन प्रतिमानो, प्रगटपणे अधिकार || सूरियाभ सुर जिनवर पूजा. रायपसेणी • मझार रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥६॥ दशमे अंगे अहिंसा दाखी, जिन पूजा जिन राज ॥ एहवा आगम अस्थ मरोडी, करिये केम अकाज रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥७॥ समकितधारी सतीय द्रौपदी, जिन पूज्या मन रंगे ॥ जो जो हो अरथ विचारी, छठे ज्ञाता अंगे रे ॥ भ० ॥ श्री० ॥८॥ विजयसुरे जिम जिनवर पूजा, Jain Education International For Personal & Private Use Only चिंतानणि पार्श्व जिन स्तवन ९४ ॥८४॥ www.jainelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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