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भावसे उदार, शृंगारसे, श्रेष्ठ। देवताओंकी, स्त्री(देवी)ओंने,जिनके,दर्शनके,भंगसे,डरीहुइकी। तरह.प्रणामकेलिये, उतावलो कराहै(जिनका), के भावोदार,सिंगार,सारं॥ अणिमिस, रमणि, 'ज,दंसण,च्छेय,भीया। इव, पणमण, ऽमंदा, कासि,
नाटकरूप पूजन ।। स्तुति करो,अजित,शांतिनाथकी,उन, करीहै, संपूर्ण शांतिजिन्होंने। सोनेकी,रजजैसी,पीलेरंगकी,छाजती है, जिन्होंकी, 'नट्टोवयारं॥६॥ थुणह, अजिअ,संती, 'ते, 'कया,ऽसेस, संती। कणय, रय, पिसंगा, छज्जए, जाण, # मूर्ति। उतावलसे, आलिंगन,शुरु करनेवाली.निर्वाणरूप, लक्ष्मीके। पुष्ट,स्तनोंको, कोरे केसरके, कादेसे,पीले करतेहुएकी तरह ७
मुत्ती॥सरभस,परिरंभा, ऽऽरंभि, निव्वाण, लच्छी। घण, थण, घुसिणिक्कु,पंक, पिंगी कयव्व ॥७॥ बहुत प्रकारके,नयोंके,भेदवालाहै, वस्तु, नित्य, अनित्य । सत्य,असत्य,नहीं बोलने योग्य,बोलने योग्य, एक,अनेक है। इसवास्ते, खोटेनयोंसे.
नय, भंगं, वत्थु,णिचं,अणिचं सद,ऽसद,ऽणभिलप्पा, ऽऽलप्प, मेगं,अणेगं॥इय, कुनय, के विरुद्ध, अतिप्रसिद्ध है,और,जिन्होंका । वचन, अवचनीय. उन', जिनोंकुं, समरताहूं।। पसरताहै, तीन लोकमें,तबतक,मोहरूप के विरुद्धं, सुप्पसिद्ध, तु, 'जेसिं। वयण, मवयणिज्जं, ते,जिणे.संभरामि ॥८॥ पसरइ, तियलोए, ताव, मोहं ।
अंधकार। भमताहै, जगद, ज्ञानरहित,बवतक,मिथ्यात्वसे,ढका हुआ। स्फुरताहै ,प्रगट,फलता हुआ, अनंत ज्ञानरूप,किरणोंके, पूरवाला। ऽधयारं। भमइ, जय, मसण्णं, ताव, मिच्छत्त, छण्णं ॥ फुरइ, फुड,फलंता, ऽणतणाणं, ऽसु, पूरो।
१ शोभती। २ हरएक । रूपसे कहनेवाला । ४ वचनसे कथन नहीं करसके पैसा। ५ अजित -शांति नाथ दो । ६ ऊगताहै।
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