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पज्जु
सण
स्तुति
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वीरेसित्तर छोडि.अंदर पचासे कही.संवच्छरी उपर नहीं कल्पे जी, सर्व तीर्थंकर, दिन पक्ष मास वर्ष, अधिक गिनतीमां जल्पे जी। ज्योतिष करंड. सर चंद पन्नत्तीए. चूर्णिए भाँखे जिनभाणजी, १ श्री कल्पसूत्र समाचारिमें “तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे रायगिहे नयरे० एवमाइख्खइ० उवदंसेइ x x सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेमो, अंतरावि य से कप्पइ, नोसे कप्पइ तं रयणि उवाइणावित्तए" (दे० ला० कल्प० पत्र ५९) "अभिवढियमि वीसा (२०), इयरेसु सवीसइ मासो (५०)" कल्पनियुक्ति । "अभिवढियवरिसे (२०) वीसतिराते गते गिहिणातं करेंति, तिमु चंद धरिसेमु (२०) सवोसतिराते मासे गते गिहिणात करेति" निशीथचूनि । “यत्पुनरभिवाद्धतवर्षे दिनविंशत्या पर्युषितव्यमित्युच्यते तन्सिद्धांत टिप्पनानुसारेण, तत्र हि युगमध्ये पौषो युगांते चाऽऽषाढ एव वर्दूते, नाऽन्ये मासास्तानि च टिप्पनानि अधुना न सम्यगज्ञाचंतेऽतो दिनपंचाशतैव पर्युषणा संगतेति वृद्धाः" कल्पसूत्रावचूरि "अभिवविय संवच्छरस्स छब्बीसाई पब्वाई(पख्खाई" रद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, "गोयमा! एगमेगस्स परखस्स धन्नरस दिवसा पन्नता" जबूदीप-सूर्य-प्रज्ञप्तिसूत्र, “ अहिगा मासा अहिगा संबच्छरा य कालमि" दशवेकालिक नियुक्ति, "एत्य अधिमासगो चेव मासो गणिज्जति, सो विमाए समं वीसतिरातो भण्णति चेव" बृहत्कल्पचूर्णि, तीज तूटे तेरस बधे (अधिक हो तो प.ली और दूसरी उस तेरम अधिक तिथिको पाक्षिक प्रतिक्रमणमें एक पक्ष १५ रात्रिदिनकी गिनतीमें देवे, जैन पंचांगमें सर्व तीर्थकरोंने १५ दिनका पक्ष मानाहै, वास्ते. लोकिक वैष्णव पंचांगमे १३-१४-१६ दिनके पक्ष होतो आगे या पीछे 1४ दिनके पक्षमें वह १ अधिक तिथिका दिन परूखी पडिकमणेमें सब गिनतीही ले इसीतरह चेमासः संवच्छरी पडिवणे भी अधिक दिन पक्ष मास गिनतीमें लेतेहैं, ६० वर्षे अधिक संवच्छ भी सब गिनती में लेते है उपर पाठ प्रमाणे जाणना।
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