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________________ ८४ सिद्ध चक्र श्रुतदेवी शुद्ध, बुद्धि देवे. श्रीजिनवचन प्रमाण जी ॥१॥ वं, सिद्धचक्रे. पंच परमष्ठिने.साधुपद कालु राख्युंजी,वंदु नवपद साधु. नहीं गांठ दसी 'ओघो. स्तुति पातरं कालु राख्युं जी'। वंदं नवपद साधु. चउदे उपगरणे. झोली जीवजतनाए भाँखी जी.ओघ नियुक्त्यादिमां. नहिं मिथ्या चक्केसरी ! यो मति कृपा राखी जी।। अष्टमी चउवीसे जिनवर, प्रणमुं हूं नितमेव ।आठम दिन करिये,चंद्रप्रभुजीनी सेव॥ मूरति मन मोहे, स्तुति जाणे पूनम चदं। दीठां दुख जाये, पामे परमानंद॥१॥ मिल चोसठ इंद्र, पूजे प्रभुजीना पाय। १ "अग्गंथिला दशिका" नहीं गांठवाली ओघेकी दशियां, छपि ओधनियुक्ति पत्र २१४ । २ गड्डि आवइणा अणुनाए सति लेवो गहेयब्वो" ("गाडिपतिकी आज्ञा होनेपर लेप-पडेभेका काला कीट-ग्रहण करना" ओघनियुक्ति पत्र १४०) इससे पूर्वकालमें साधु गाडिके पैडेका काला कीट ग्रहण करते और उससे सपातरे रंगतेथे इसलिये पूर्वकालमें साधुओंके पातरे काले रंगके होतेथे । ३ "पत्ताबंधो, पात्रबंधो,येन पात्रं धार्यते बखखंडेन चतुरस्रेण" (पात्रबंध-झोलि वहहै, जिस चौखुणे वखखंडसे पातरे धारण किये जाते है" छपा प्रव. पत्र 1१८, ओघनि० पत्र २०८) "प्रयोजनं तु पात्रबंधपात्रस्थापनयो रजःप्रभृति रक्षणं xx उक्तं च-'रयमाइ रख्खणहा पत्ताबंधो (सचित्त रज तथा जीव आदिको बचानेके लिये पात्रबंध-झोलि-है' प्रव० पत्र १२०) इससे काष्ठ. पात्रकी तरह तुबपात्र तथा महिपात्र (घडा कीभी झोलि सचित्तरज जीवादिकी रक्षाके प्रयोजनसे है। 555555555555 55555555555 155555555555555555 ॥७॥ Jain Educat ional For Personal Private Use Only www.nebrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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