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________________ परमातम पद संपद पाया, श्रीऋषभ जिनेसर जिनराया, प्रभु! जे समता सुख सदा आपे, जडता युत कुमति लता कापे, वलि बोध बीजने थिर थापे, प्रभु! ।२। पर पुद्गल ममता दूरगमे, चेतनता निजघर मांहि रमे, तिहां जन्म मरण दुःख सहु विरमे,प्रभु! ॥३॥ जेहथी भव परिणति चित्त हैन वसे, अध्यातम अनुभव गुण विकसे, तिहां सहज समाधि दशा हुलसे, प्रभु ०।४। ए अध्यातम वीनती मधुरी, वाचक गणि 'क्षमाकल्याण' करी, प्रभु! सफल करो मुज हितधरी प्रभु! ॥ म (थुइ) श्रीसिद्धाचले आदि जिन आव्या, पूर्वनवाणु वार जी। अजित शांति चोमासुं कीg, ॐ गणधर मुनि परिवार जी॥ दर्शन पूजन, भविजन कीg, देशना अमृत पीधुं जी। चोमासे'तलाटी देरे,जिन दर्शन पूजन, नर स्त्री किम निषेधुं जी ॥१॥ स्तवन राग प्रभाती-ऊठाने मोरा आतमराम ! प्रभु मुख जोवा जइये रे,ऊठोने सिद्धगिरि ध्यावो विमलगिरि ॥२८॥ की जावो, कंचनगिरि वेलां वधावो रे,सिद्धगिरिए आंकणी। इण गिरिवरियारी महीमा मोटी,कहेतां न दशवै० BA चोमासेमें सिद्धाचल तलाटी पगले मंदिरे जयणाये जानेमें दोष नहीं,शास्त्रकी आज्ञाहै "जयं चरे जयं चिट्ठ,जयमासे जयंसए। जयं भुंजतो भासंतो,पावं कम्मं न बंधEM ATI 9555555555555555555555) CIELLE Jain Education international For Personal Private Use Only Halnelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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