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________________ लागे खोटी रे। रायण रूंख समोसर्या स्वामी,पूर्व नवाणुं मोटी रे, सिहा पाच कोडिशुं पुंडरिक सिद्धा,बेबे कोडिशुं नमि विनमि जाणो रे। दश कोडि परिवारे द्राविड,वारिखिल्ल वखाणोरे,सिद्धा०।२। राम भरत पाडव नारद ऋषिराया गुणप्रभुका इहां गायारे। कर्मखपावी केवल पाया, हुआ शिवरमणि से राया रे,सिद्ध ०।३। थावच्चापुत्र ने शुक शैलकमुनि देवकीनंदन सिद्धा रे। शांब पद्युम्नकुमार इहां सिद्धा, में कारज निजनिज कीडा रेसिद्ध ।। गिरिवरे जिनजीकी सेवाहेवा,नितनित मुजने होजोरे जिनज्ञाने में जिनध्याने रहिने, जिनचंद्र पद लेजो रे,सिद्ध०। (थुइ) आव्या पवनवाणुं आदिजिन चोमासी अजित शांति कीधीजी। तीरथ आशातना प्रभाव नष्टकारी ऋतुवंती' पूजा निषेधी जी। सिहगिरिजिनकी दर्शन पूजन,सहुने चोमासे कीम निषेधुं जी।अढी कोश ऊंचा गिरिजावानु,कल्पसूत्रे वीरे कीधुं जी में १ चोथे आरंमें भी ऋतुवंतीको जिनपूजाका निषेध था, अब इसकालमै जिनबिंब पूजती हुइ सी अकाले ऋतुवंती होती है इसलिये वैसीको चमत्कारी मूलजिनविकी अंगपू. # जाका निषेध अयुदत्त नहीं इ, पूर्वाचार्योंने चैत्यवंदन कुलकमें कहा कि "-तं पुण सपाडीहेरं, अपाडिहेरं च मूलजिणविवं । पूइज्जइ पुरिसेहिं, न इत्थि यार अमुइभावा " २ चोमायेमें साधुसाच्चीकोभी चार दिशि नीचे उंचे छ दिशिमें अढिकोश जाने आने रहनेकी आज्ञाह-"वासावासं पज्जोसवियाणं +कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सव्वओ समंता सक्कोसं जोयणं उग्गई ओगिण्डित्ताणं चिहिउं अहालंदमवि उग्गहे" कल्पसूत्र समाचारी पत्र ५९ ॥ 555555555555555555555555555 12onal For Personal Private Use Only Winbayar
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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