SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचरे, सेवे सुर नर पायाजी ॥१॥ काल अतीते जे,जिनवर हुआ, होस्ये वलिय अनंताजी। संप्रति काले, पंच विदेहे, वरते वीस विख्याताजी॥ अतिशयवंत, अनंत गुणाकर, जगबंधव जगत्राताजी। अध्यायक ध्येय, स्वरूप जे ध्यावे, पावे शिवसुख साताजी।।अरथे श्री अरिहंत प्रकाशी. सूत्रे गणधर आणीजी। मोह मिथ्यात्व तिमिर भर नाशन,अभिनव सूर समाणीजी॥ भवोदधि तरणि.मोक्ष निसकरणि, नय निक्षेप सोहाणीजी।ए जिनवाणी,अमिय समाणी आराधो भवि प्राणीजी।। शासन देवी. सुरनर सेवी, श्री पंचांगुली माईजी।विघन विडारणी,संपत्ति कारणी,सेवकजन सुखदाईजी॥त्रिभुवन ५१. मोहनी, अंतरजामनी,जग जस ज्योतिसवाईजी।सांनिधकारी संघने होयज्यो श्री जिनहर्ष सहाईजी। सिद्धा __जय जय नाभि नरिंद नंद!, सिद्धाचल मंडण। जय जय प्रथम जिणंदचंद, भव दुःख विहंडण वंदन ॥ जय जय साधु सुरिंद विंद, वंदिय परमेसर। जय जय जगदानंद कंद, श्रीऋषभ जिणेसर।। ५२ ॥ अमृतसम जिन धर्मनोए,दायक जगमें जाण।तुझ पद पंकज प्रीतिधर,निशिदिन नमत ‘कल्याण।३। ॥२७॥ प्रभु ! मयाकरी, दिलरंजन दीदारको दरिसण दीजिये, (ए आंकणी) श्रीसिद्धाचल गिरिवर राया, 9555555555555555555 For Personal Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy