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३१.
२५ बोल
अंगके २५ बोल
5 भावना', तीनगुप्तिके । विपरीत, आचरणेमें(लगे), अतिचार (याद करे)। भावणा, गुत्ती। वितहा, ऽऽयरणे, अईयारो ॥१॥
मूत्र अर्थ साचो सद्दहूं।। सम्यक व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय २ मिश्र मोहनीय ३ परिहरू ५। कामराग १ स्नेहराग २ दृष्टिराग ३ परिहरु २७ सुदेव १ मुगुरु २ मुधर्म ३ आदरुं३ ।१०। कुदेव १ कुगुरु २ कुधर्म३ परिहरु।१३। ज्ञान १ दर्शन २ चारित्र ३ आदरूं।२६। ज्ञान विराधना १ दर्शन विराधना २ चारित्र विराधना ३ परिहरूं ।१२। मनोगुप्ति १ वचनगुप्ति २ कायगुप्ति ३ आदरूं ।२२। मनोदंड १ वचनदंड २ कायदंड ३ परिहरूं ।२५।
हास्य १ रति २ अरति ३ परिहरु, (डाबी भुजामें मुहपत्तीसे पूंजना)। भय १ शोक २ दुगंछा ३ परिहरूं, (जीमणी भुजामें)। कृष्ण लेश्या ? नील लेश्या २ कापोत लेश्या ३ परिहर, (मस्तक-ललाट उपर)। ऋद्धिगारव १ रसगारव २ सातागारव ३ परिहरूं. (मुख उपर)।मायाशल्य ? नियाणाशल्य २ मिच्छादसण शल्य ३ परिहरु, (हृदय-छातो उपर)। क्रोध १ मान २ परिहरू, (डावे खंधे)। माया । लोभ परिहरूं, (जीमणे खंधे)। पृथिवीकाय ? अप्काय २ तेउकाय ३ रक्षाकर्मी, (ओघेसे चरवलेसे जीमणे पग उपर)। वाउकाय १ वनस्पतिकाय २ सकाय ३ रक्षा करूं, (डावे पग उपर पूंजना)।
१ अनित्यादि १२. या पांच महाव्रतोकी २५ भावना । २ ये सात बोल बोलने हुए मुहपत्ती खोलके तीन वेला उलट पलट फिगनी बादमें दोबडी करके मुहपत्तीके तीन सल पाडके जीमणे हाथ में पकडे, और डाबी हथेली उपर फिराते हुए आगे लिखे बोल बोलने । ३ आदरु बाले बोल बोलते हुए मुहपत्ति पंजेकी तरफ लेजानी. और परिहरु वाले बोल बोलते हुए मुहपत्ती अंगुलियोंकी तरफ लेजानी । ४ प्रतिक्रमणकी पुस्तकोंमें 'कृष्ण लेदया' आदि बोल यद्यपि पहले लिग्ने है, परंतु साधुविधि प्रकाश-प्रवचनसारोद्धारकी टीका-मुहपत्ती पडिलेहणकी सज्झाय तथा स्तवनादिमें हास्य' आदि बोल पहले होनेसे हमनेभी इसी तरह लिखेहै । ये 10 बोल साध्वीयोंको तथा श्राविकाओंको नहीं कहने और इन + स्थानोंकी पडिलेह भी नहीं करना ।
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