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गराणं म
आचाया
वेयावच्च करनेवाले, शांति करनेवाले, सम्यग्दृष्टियोंकु, समाधि करनेवाले (देवोंका), करताहूं, का उस्सग्ग, अन्यत्र। वेयावच्च- 'वेयावच्चगराणं, संतिगराणं, सम्मदिठि, समाहिगराणं, करेमि, काउस्सग्गं, अन्नत्थ० ।
आवार्य मिश्रकुं, उपाध्यायमिश्रकू, . वर्तमानगुरुकुं, सर्वसाधुओंकु,
आचार्यमिश्रं १,नपाध्यायमिथर,वर्तमानगुरुन्३.सर्वसाधून ४। (खमासमणे ।४।) दि वंदन इच्छा करके, (आप)आज्ञा दो, हेभगवन् !, राइअ, पडिक्कपणा, था?, आज्ञा प्रमाणहै। सबही, रात्रीसंबंधी.
२८ इच्छाकारेण,संदिसह, भगवन् !, राइअ, पडिक्कमणे, ठाऊं ?, इच्छं। सव्वस्सवि, राइअ, पडिक्कC Hदुष्ट चितवन, दुष्ट भाषण, दुष्ट चेष्टासे(लगा), मिथ्याहो, मेरा, दुष्कृत(पाप)। २. | दुन्चिंतिअ.दुभासिअ, दुञ्चिठिअ, "मिच्छा, मि, दुक्कडं। (नमुत्थुणं करेमि भंते!, इच्छामि ठामि
काउस्सग्गं जो मे राइओ०। देवसीमें करोमि भंते!.इच्छामि ठामि काउस्सग्गंजो मे देवसिओ०।
शयन(संथारियादि)में, आसनमें, आहारमें, पाणोमें। चैत्यवंदनमें, साधुभक्तिमें, शय्याम, लघुनीति, वडिनीतिमें, । पांचसमिति, सयणास
सयणा, सण, ऽन्त्र, पाण। चेइअ, जइ, सिज्ज, काय, उच्चार, णगाथा
१ सारसभाल । ॐ देवसीमें 'देवसिव' (दिवस संबंधी) कहना । २ या दशविध यति धममें। ३ उपाशय प्रमार्जन दिने । ४ टल्ले-मातरे जान आने परटने आदिने ।
फफफफफप्तमानतद्रकान्य
"सिज, काय, उच्चारे, ॥ समि
ज॥२९॥
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