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________________ | प्रकार करिये भले भावे भरिये पुन्यभंडार । वलि चैत्यप्रवाडे फिरतां लाभ अनंत, इम पर्व पजुसग सहुमें महिमावंत ॥२॥ पुस्तक पूजावी नव वाचनाये वंचाय,श्रीकल्पसूत्र जिहां सुणतां पाप पुलाय। प्रतिदिन परभावना धूप अगर उखेव, इम भवियण प्राणि पर्व पजुसण सेव ॥३॥ वलि साहमिवच्छल करिये वारंवार, केइ भावना भावे केइ तपसि शीलधार । अदीह पजुसण इम सेवत आणंद, सुपदेवी सांनिध कहे 'जिनलाभसूरींद ॥ ४ ॥ श्रीवीर कल्याण गर्भहि वीर हरण ते धारण,त्रिशला कूखे अवतरीया (संक्रमिया) जी। कल्याण श्रेय गर्भा-5 फल कल्याण सुपने, वे माता इंद्रादि सह मान्या जी ॥ नीव उच्च वे गोत्रे अच्छे कल्याण जे. ते किम कहूं अकल्याण जी। कल्याण जे उच्च गोत्रे ते नीच विपाक निंब, कही किम थापुं अकल्याण जी। ॥१॥ सर्व जिन माता कूखे जब आव्या, 'के मन्ने कल्लाणे फल मान्या जी। कल्याण ते श्रेय सुख समृद्धि पुत्र लाभ, सुपने पाठके दिखलाया जी ॥ राणी राजा इंद्रे सर्वे तिम मान्या, श्रुतकेवली भद्रबाहुए जी । कल्पसूत्र पंचाशके जिन गर्भ धारण, कल्याण 15555555555555555555555 वहार स्तुति ॥२५॥ in Education For Personal Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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