________________
# शुभ समता रस धामीजी। श्री सिद्धचक्र शिरोमणि जिनवर ध्यावे जे मनरंगे जी, ते मानव श्री
पालतणी परे पामे सुख सुर संगेजी॥१॥ अरिहंत सिद्ध आचारज पाठक साधु महागुणवंता जी, दरिसण नाण चरण तप उत्तम नवपद जग जयवंता जी। एहनुं ध्यान धरंतां लहिये अविचल पद अविनाशी जी, ते सघला जिननायक नमिए जिणे ए नीति प्रकाशी जी॥२॥ आसो मास मनोहर तिमवलि चैत्रक मास जगीसे जी, उजवाली सातमथी करिये नव आंबिल नव दिवसे जी। तेरे सहस वलि गुणिये गुणणो नवपद केरों सारो जी, इणिपरे निर्मल तप आदरिये आगम साख
उदारोजी ॥३॥ विमल कमल दल लोयण सुंदर श्रीचक्केसरि देवी जी, नवपद सेवक भविजन # केरा विघ्नहरो सुर सेवी जी।श्रीखरतरगच्छ नायक सदगुरु श्रीजिनभक्ति मुणिंदा जी.तासु पसाये २२ । इणिपरे पभणे श्रीजिनलाभसूरिंदा जी ॥४॥ पजुस वलि वलि हूं ध्यावं गाऊं जिनवर वीर,जिन पर्व पजुसण दाख्या धर्मनी सीर। आषाढ चोमासे
हंति दिन पचास, संवच्छरी पडिक्कमणुं करिये त्रण उपवास ॥१॥ चउवासे जिनवर पूजा सतर
॥२४॥
Jain Education international
For Personal Pre
ss Only