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२१
नवपद
स्तुति
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कि धपमप धुधुमि घोंघों धसकि धरधप धोरवं, दोंदोंकि दोंदों दागिदि दागिदिकि दमक द्रण रण द्रेणवं । झझि झेंकि झेंझें झणण रण रण निजकि निजजन रंजनं, सुरशैलशिखरे भवतु सुखदं पार्श्वजिनपतिमज्जनं ॥ २ ॥ कटरेंगिनि योगिनि किटति गिगड़दां धुधुक घुटन पाटवं, गुणगुणण गुणगण रणकि र्णेणें गुणण गुणगण गौरवं । झझि झेंकि झैंझें झणण रणरण निजकि निजजन सज्जनाः, कलयंति कमला कलित कलमल मुकल मीशमहे जिना : २ ठकि चूँकि ठे ठर्हि ठर्हकि ठर्हि पट्टा ताड्यते, तललोंकि लोलों खि खिनि डोंखे डेंखिनि वाद्यते । तँ तँकि तँतँ थुगि थुंगिनि धोंगि धोंगिनि कलरवे, जिनमतमनंतं महिम तनुतां नमति सुरनरमुत्सवे ॥३॥ खुंदांकि खुदां खुखुदि खुदां खुखुदि दोंदों अंबरे, चाचपट चचपट रणकि णेंणें डणण डेंडें डंबरे । तिहां सरगमपधुनि निधप मगरस सस सस सुरसेवता, जिननाट्यरंगे 'कुशल' मनिशं दिशतु शासनदेवता ॥४॥
निरुपम सुख दायक जगनायक लायक शिवगति गामी जी, करुणा सागर निजगुण आगर
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॥२३॥
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