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________________ 555555555555555 श्रेय बताये जी ॥२॥ श्रीजिन पडिमा पूजा भाँखी, ऋतुवंती नहीं पूजे नार जी। धन हाणी काया रोग इह भवे होवे, शासन मलिनता कार जी। जिन अंग पूजती ऋतुवंती थाय जे, करे देव प्रभाव निसार जी। ते स्त्री न पूजे देवाधिष्ठ मूल बिंब, जे शासन नन्नति कार जी ॥३॥ वीर शासन सिद्धायिका देवी, सुर गण करे सदा सार जी। वीर कल्याण श्रेय गुण गण गातां, श्रेय फल कल्याण अपार जी॥ नीच निंद्य अकल्याणक भूत मानी, किम बांधूं कर्मनो भार जी। जिन आशातना अवगुण बोले. श्रीजिनचंद्रशासन दर जी ॥४॥ सर्वलोकमें, अरिहंत चैत्यों (किंवों)की, करताहूं, काउस्सग, वंदनाके निमित्त, पूजनके निमित्त, सत्कारके निमित्त, सव्वलोए.अरिहंत चेइयाणं, करेमिकाउसग्गं१. वंदणवत्तियाए.पअणवत्तियाए सकारवत्तियाए सन्मानके निमित्त, बोधिसमकितलाभकेनिमित्त, निरुपसर्ग(मोक्ष)के निमित्त। श्रद्धासे, मेधा(बुद्धि)मे, धृति(धीरजता) से, धारणासे, सम्माणवत्तियाए,बोहिलाभवत्तियाए, निरुवसग्गवत्तियाए। सडाए, मेहाए, धिईप धारणाए. अनुप्रेक्षातत्त्वविचारणासे, वधतीहुइ, ठाताहूं, काउस्सग्गकुं। 5 अणुप्पेहाए, “वढमाणीए, ठामि, काउस्सग्गं ॥३॥ अन्नत्थ० 555555555555555 अरिहंत चेइयाणं ॥॥२६॥ Jain Education animational For Personal Private Use Only wrwww.ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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