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________________ फारमुश्किलसे जाजित होने पीलिये। केवलज्ञान) होतीहै, विफल १, हेजिन !,( मैं )जानताहूंकि,क्याहैकि.फिर। मैं, दुःखितहूं, निश्चय,सत्व,रहितहूं,दुरंजनीयहूं२,उत्सुक,मनवालाहूं। इसलिये होइ, विहलु,'जिण!, जाणउ, किं. पुण। हां,दुख्खिउ,निरु,सत्त.चत्त, दुक्कहु,उस्सुय, मण । तं, आंखमीफ (यह)मानुंकि निमेषमात्रसे,यह यह भी, यदि, मिले(तो)। सत्यहै,जो, भूखेके, वशसे,क्या,ऊंबरा,पकताहै ?(नहीं)।२७। तीनभुवनके, चके उधाम मन्नउ, निमिसेण,एउएउवि, जइ, लाभइ।सच्चं,ज,भुख्खिय,वसेण,किं,उंबरु,पच्चइ ?॥२७॥'तिहुअण, फलप्राप्तिके 5 स्वामी, हेपार्श्वनाथ !, मैंने,आत्मा,प्रकाशितकियाहै। करो, जो, निजरूपके ,सरीखाहो(वह),नहीं,जानताहूं,(मैं)बहुत, बोलना। दर्शन सामिय,पासनाह!,मइ,अप्पु, पयासिउ।किज्जउ, नियरूव, सरिसु, 'न,मुणउ, बहु, जंपिउ ॥ इच्छासी चारित्रादि अन्य,नहीं है, हेजिन !,जगत्में, आपके समानभी दाक्षिण्य(लिहाजऔर)दयाका आश्रय। यदि, अवगणते हैं(तो), आपही, दुःखहैकि अकाल दुःख तथा अन्नु. न, जिण!,जगि, तुह,समोवि, दख्खिन्नु,दयाऽऽसउ। जइ,अवगन्नसि,"तुहुजि,अहह!! मनोरथ कहेहै। (मैं)कैसा,होऊंगा, हताश हुआ । २८ । यदि, आपके, रूपसे, किसीभी, प्रेतप्रायने१०,(मुझे)ठगलियाहै। तोभी,जानताहूंकि, हेजिन ! कह, होसु, "हयासउ॥२८॥ जइ, तुह,रूविण,किणवि,पेयपाइण,वेलवियउ। तुवि,जाणउ,'जिण!, हेपार्श्व!, आपसे, मैं, अंगीकारकियागयाहूं । इसलिये, मेरा,इच्छित १, जो,नहीं,होताहै,वह,आपकी,अपहापनाहै१२ । रखतेहुए(आपको), पास!, तुम्हि, हउं, "अंगीकिरिउ॥ इय, मह,इच्छिउ,जं.न,होइ,सा, तुह, ओहावणु। रख्खंतह, - आप अपने योग्य | ८ अधिककी तो बातही क्या कहना । ९ हणागइहै आशा जिसकी। १० व्यतरादिक । ११ मनोरथ । १२ लघुता । 15555 in Education in For Personal B. Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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