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________________ से अपनी, कीर्तिको, नहींज, युक्तहै, (मुझे)अवधीरना' ।२१। यह, (मेरी)महायोग्य,यात्रा, हेदेव !, यह, स्नात्र, महोत्सव । जो, निय. कित्ति, णेय,जुज्जइ,'अवहीरणु॥२९॥ एह, महारिय,जत्त, 'देव !,इहु न्हवण,महूसउ । 'जं, अनलीक(सत्य),गुणोंका, ग्रहण,आपके, मुनिजनोंको, अनिषिद्धहै । इसलिये, प्रसन्नहो, हेश्रेष्ठपार्श्वनाथ !, स्तंभनकपुरमें, रहेहुए। अणलिय गुण,गहण, तुम्ह, मुणिजण,अणिसिद्धउ॥एम, पसीह, सुपासनाह !, थंभणयपुर,ठिय । इसतरह,मुनियों में,उत्तम, श्रीअभयदेव(मूरि), विनवे है,(किसीसे)नहींनिंदित ॥३०॥ इय, मुणि,वरु सिरिअभयदेउ,विनवइ, अणिंदिय॥३०॥ जयवंतेरहो,हेमोटे यशवाले ,जयवंतेरहो,हेबडेयशवाले !,जय०,हेमहाभाग्यशालि !,जय०,हेचिंतित(इष्ट), शुभफलदाता!, जय० हेसमस्त, जय जय, महायस!, जय, महायस!, जय, महाभाग!,जय, चिंतिय, सुहफलय !,जय, समत्थ, महाशय में परमार्थ(तत्त्व)के जानकार !,सदाजयवंतेरहो,हेमोटी,गौरवतावाले गुरो !,जय०,हेदुःखपीडित,प्राणिओंके रक्षक ! खंभातमेंरहेहुए, हेपार्धजिन !, में परमत्थ,जाणय !, जय जय, गुरु, गरिम, गुरु!,जय, दुहत्त,सत्ताण,ताणय!,थंभणयव्यि,पासजिण!. हेभविकोंके,भयंकर,भवको ३, अस्त्र(शस्त्र) ! हेभयको,हटानेवाले !,हेअनंतगुणवान् !,आपको,तीनोंसंध्यामें, नमस्कारहो। भवियह,भीम, भव, ऽत्थु!, भय,अवणिता!, णंतगुण!,तुज्झ, तिसंज्झ, नमोऽत्थु । FR १ मेरी अवगणना करनी । २ मेरे उपर । ३ नष्ट करनेके लिये । २२॥ Jain Education International For Personal Private Use Only wronw.jainelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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