________________
भुवनकेउपकार, स्वभाववाले,भावकरुणाकेर, रससे, उत्तम। सम, विषमभूमि, क्या, मेघ, देखताहै ? ३, भूमिमें,गर्मीको,शमाताहुआ। भुवणुवयार, सहाव, भावकरुणा,रस,सत्तम ॥'सम,विसमई, किं, घणु, नियइ ?,'भुवि,दाह, समंतउ। इसलिये,दुःखियोंके,बांधव,हेपार्श्वनाथ !, मेरेको, पालो, “स्तवतेहुए । २४ । नहीं है,दीनोंकी', दीनताकुं,छोडके, अन्यभी, कोइ,
इय, दुहि,बंधव,पासनाह !,१मइ,पाल, थुणंतउ॥२४॥'नय, 'दीणह, दीणयु,मुयवि, अनुवि, किवि, 15 योग्यता । जिसको देखके, उपकार, करतेहैं, उपकारमें, भलेउद्यमी । दीनोंसेदीन हूं,सवतरहहीनहूं, जिससे,आप,नाथने, (मुझे)त्यागाहै।
जं,जोइवि उवयारुकरहि. उवयार समुज्जय॥ दीणहदीणु,निहीणु,जेण तइनाहिण,चत्त। इसलिये, योग्यहूं, मैं हो, हेपार्थ :, पालो, मेरेकुं, अच्छीतरह ।२५। अब, अन्यभी, योग्यताविशेष, कोइ,
तो,"जुग्गउ, अहमेव, पास!, १३पालहि, मइ,चंगउ ॥२५॥'अह, अत्रुवि, जुग्गय विसेसु, 'किवि, मानतेहोकि,दीनोंकी । जिसको, देखकर, उपकार, करतेहो, आप,हेनाथ !, समग्रलोगोंका। वह ही, निश्चय,कल्याणकारीहै, जिससे,
मन्नहि, दीणह । “जं.पासिवि,उवयारु,करइ, तुह, नाह! समग्गह॥सुच्चिय,किल,कल्लाणु, जेण, हेजिन !, आप, प्रसन्नहोवें। क्याहै ?, अन्य से, वहही हो, हे देव !, मत, मेरेको, अवगणो । २६ । आपसे प्राथना,नहींज, जिण!,तुम्ह,पसीयह। किं?,"अन्निण,"तंचेव, देव!,"मा,“मइ, अवहीरह॥२६॥'तुह,पत्थण, नहु, ॥२०॥ १ जगत्का उपकार करनेके । २ धर्महीन जीवोपर दया। ३ नहीं देखता । ४ आपको । ५ लाचारोंकी लाचारता। ६ गरीबोंसे गरीब । ७-८ योग्यता। ९ करी हुइ । र
Jain Education n
ational
For Personal Private Use Only
LFlinelibrary.org