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कितनेहीने, हरायाहै, शत्रुसमुदायकुं,कितनेहीने, (स्व)यशसे,धौला करा (तो),भुमितलकुं। मेरेकुं, अवगणतेहो ?, क्यों, हेपार्श्व !,
किवि, "गंजिय, रिनवग्ग, केवि, जस, धवलिय, भूयल । मइ,अवहीरहि ?, केण,पास!, शरणागतोपर,वत्सल(प्रेम)वाले ।२१। प्रत्युपकारकी',इच्छारहित,हेनाथ !, निष्पन्न(सिद्ध हुए,प्रयोजनवाले। आप, हेजिनपार्थ!,परकाउपकार, 'सरणागय,वच्छल॥२२॥ पच्चुवयार,निरीह,नाह!, निप्पन्न, पओयण। 'तुह, जिणपास!, परोवयार, करनेमेंही एक, तत्पर। शत्रुमित्रमें, समानचित्तवृत्तिवाले,नमे में, निंदकमें, समान मनवाले । मत, अवगणोर, अयोग्यभी, .. मेरेको, करणिक,परायण॥ सत्तुमित्त,समचित्त वित्ति, नय, निंदय, सममण। मा,अवहीरि, अजुग्गओवि,मइ, - हेपार्थ !, पापरहित । २२। मैं, बहुतमकारके,दुःखोंसे,तपेहुए,शरीरवालाहूं,आप,दुःखनाशकरनेमें,तत्परहो । मैं,सुजनोंकी, करुणाकाएक, ई
पास!,'निरंजण॥२२॥'हनं, बहुविह, दुह, तत्त, गत्तु, तुहु,दुहनासण परु। हउं,सुयणह,करुणिक, स्थानहूं, आप,निश्चय, करुणा, तत्परहो। मैं, हेजिनपार्थ!, विनास्वामीवालाहूं, आप,तीनभुवनके,स्वामीहो(वास्ते)। जो,अवगणतेहो, ठाणु,तह, निरु,करुणा, परु॥हां,जिणपास!, असामिसालु.तहतिहअण, सामिय। जं,अवहीरहि मेरेको, विलापकरते, यह, हेपार्श्व !, नहीं शोभताहै । २३ । योग्यअयोग्यके, विभागको, हेनाथ !, नहींज, देखतेहैं, आप, सरीखे । मइ, 'झखंत, इय, पास!, न सोहिय॥२३॥ जुग्गाऽजुग्ग, विभाग, नाह !, नहु,जोयहि, 'तुह, सम। ॥१९॥ 1 उपकार का बदला। २ मेरा तिरस्कार मत करो। 3 आपको।
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