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________________ # क्लिापकरतेहुए । १८ । क्या क्या,कल्पा(विचारा),नहींज,करुणाकारी,क्या क्या, या, नहीं, बोला। क्या, अथवा,नहीं,चेष्टाकरी, विलवंतउ॥१८॥ किंकिं, कप्पिउ, णेय, 'कलुणु, किं किं, व,न,जंपिउ ॥"किं, ३व, 'न,चिठिउ, में फकष्टकारी, हेदेव !, दीनताकुं, अवलंबके। किसकी, नहीं, करी, निष्फल, खुशामद, हमने, दुःखसेपीडायेहुए। तौभी, किछु, "देव!, दीणय,मऽवलंबिउ॥"कासु,'न,किय,"निप्फल्ल,लल्लि, अम्हेहि, दुहऽत्तिहि । तहवि, नहीं, पाया, शरण, कुछभी, आपको, हेप्रभो !, सर्वथात्यागनेवाले । ११ । तुम, स्वामीहो, तुम, मातापिताहो, तुम, मित्रहो, "न,पत्तउ, ताणु,२किंपि, पइ, 'पहु!, परिचत्तिहि॥१९॥'तुहु,सामिउ,तुहु, माय बप्पु, तुहु, 'मित्त, #प्रियकरनेवाले। तुम,गतिहो, तुम,मतिहो, तुमही,रक्षकहो,तुम, गुरुहो,क्षेम करनेवाले। मैं, दुःखके,भारसे, भारित(दवा)हूं,वराक(रांक),राजाहूं, पियंकरु। तुहु,गइ,तुहु,मइ,तुहुजि,ताणु,तुहु, गुरु, खेमंकरु॥हउं, 'दुह,भर, भारिउ, वराउ, राउल, निर्भाग्योंका। लीनहुआहूं, आपके, चरणकमलके, शरणमें,(वास्ते)हेजिन !,(मुझे)पालो, उत्कृष्ट । २०। आपने,कितनेही, कियेहै, निाभग्गह।"लीणउ,'तुह,कमकमल, सरण, "जिण !, पालहि, चंगह॥२०॥'पइ, किवि, 'कय, नीरोगी, लोकोंको,कितनेहीको,माप्तकरायेहै,मुख, सैकडों। कितनेही,मतिमंत २,मोटेहुए, कितनेही,कितनेहीने, साधाहै, शिवपद। नीरोय, लोय, किवि, पाविय, मुह, सय। किवि,मइमंत,"महंत, केवि, किवि,"साहिय, सिवपया ॥१८॥ कल्याण । २ आपकी कृपासे । ३ बुद्धिवान् । 5555555555555555555555 For Personal Private Use Only wrane.sanelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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