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अभिमानी, अन्य दर्शनी, देवता। जोगणी, पूतना', क्षेत्रपाल, क्षुद्र(दुष्ट) असुररूप,पशुओंका,समूह । तुमसे,त्रासपाके, भागेहुए, अच्छीतरह दरिय,परदरिसण देवय। जोइणि पूयण,खित्तवाल, खुद्दाऽसुर, पसु, वय॥'तुह,उत्तठ्ठ,सुनछ, सुठ्ठ, व्याकुलतारहित, रहते है । इसलिये,त्रिभुवनरूप, वनमें,सिंहतुल्य,हेपार्च !,(मेरे पापोंको, अत्यंतविनाशो।१६। धरणेंद्रके,फणमें(रहे),अत्यंत, अविसंठुलु,चिठहि । इय, तिहुअण, वण, सीह,पास!, पावाइ, पणासहि॥१६॥'फणि, फण, फार, देदीप्यमान,रत्नोंको,किरणोंसे रंगेहुए,आकाशतलमें। प्रियंगु(वेल)के,नवेअंकुरे,पत्ते,तमालवृक्ष,नीलकमल (जैसे),श्यामरंगवाले। कमठामुरनेकिये, फुरंत रयण, कर, रंजिय, नहयल। फलिणि,कंदल,दल, तमाल,नीलुप्पल, सामल ॥ कमठाऽसुर,
उपसर्गसमुदायके, संसर्गसे,नहींहारनेवाले। जयवंतेरहो, प्रत्यक्षहुए, जिनेश :, हेपार्थ, स्तंभनकपुरमें रहेहुए ।१७। मेरा, मन, Fउवसग्गवग्ग संसग्ग,अगंजिय! 'जय, पच्चरुख जिणेस!, पास,थंभणयपुरठिय ॥१७॥ मह, मणु, म चंचल, प्रमाण, नहीं है,वाचा(वाणी)भी,विसंस्थुल है । ३नहीं है, और, शरीरभी, अविनयस्वभाववाला, आलससे, परवश (ऐसा)।
तरलु, पमाणु,नेय, वायावि, विसंठुलु। 'न, 'य, तणुरवि, "अविणयसहावु,आलस,विहलंघलु॥ (किंतु) आपका, महात्म्य, प्रमाणहै, हेदेव !, करुणाभावसे, प्रवृत्तहुए। इसलिये, मेरेको, मत, अवगणो, हेपार्थ !, (किंतु)पालो, +
"तुह, माहप्पु, पमाणु, देव!, कारुण्ण,पवित्तउ।"इय,"मइ, मा,अवहीरि,२पास !, पालहि, ॥१७॥ १दुष्ट व्यंतरी । - १७ मा काव्य बोलते हुए भगवानकी प्रतिमा प्रत्यक्षहुइ,इसीलिये श्रीअभयदेवसूरिजी महाराजने यहां पचरूख'शब्द वापराहै ।२ चलविचल । प्रमाण । ४आपकी कृपाम ।
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