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________________ प्राणी, भोगवते है, राज्योंको। देखतेहैं, मोक्षको, असंख्य सुखवाले, तुमारे, हेपार्थ!, प्रसादसे। इसलिये, तीनभुवनमें, जण,भुंजइ, रजइ॥"पिरुखइ,मुरुख,असंखसुख्ख, तुह, पास!, पप्ताइण।"इय, तिहुअण, 5 उत्तम,कल्पवृक्षकेतुल्य, सुखोंको, करो, मेरेलिये,हेजिन(देव)!।। ज्वरसे,जर्जरता वाले, सडेहुए कानवाले,नष्टहुएओठवाले, गलितकोढसे । वर,कप्परुरुख,“सुख्खइ,कुण, मह, जिण!॥२॥'जर, जज्जर, परिजुण्णकण्ण, नळुछ, 'सुकुठिण। नेत्रोंसेक्षीणतेजवाले,क्षयरोगसे,दुर्वलहुए,मनुष्य, शल्यवाले, शूलरोगसे । आपके, हेजिन !, स्मरणरूप, रसायन से, जल्दी, होते हैं, चरुखुरुखीण,खएण,खुण्ण, नर, सल्लिअ, सूलिण ॥तुह, जिण!, "सरण, रसायणेण, लहु, हुंति, फिरनवीन(युवान)। जगत्केधन्वंतरि(वैद्य), हेपार्श्व !, मेरेकोभी, आप,रोगहरनेवाले, हो । ३। विद्या,ज्योतिप, मंत्र, तंत्रोंकी सिद्धि(तथा), "पुणण्णव । जयधन्नंतरि, पास!,"महवि,"तुहु, रोगहरो,भव॥३॥विज्जा,जोइस,मंत तंत, सिद्धिउ. से विनाप्रयत्नसे। भुवनमें अद्भुत ,आठ प्रकारकी सिद्धियां सिद्धहोतीहै, तुमारे, नामसे। तुमारे, नामसे, अपवित्रभी, मनुष्य, | अपयत्तिण । भुवणऽभुअ,अविह, सिद्धि, सिज्झहि, तुह,नामिण॥ तुह,नामिण, अपवित्तओवि,जण होताहै, पवित्र । इसलिये, तीनभुवनमें, कल्याणके,खजाने, आप, हेगर्थ, कहेगयेहो । ४ । क्षुद्रोंसे प्रयुक्तहुए ४,मंत्र, तंत्र,यंत्रोंको, होइ, पवित्तउ। 'तं, तिहुअण,कल्लाण,कोस, तुह, पास!, निरुत्तउ॥४॥ खुद्दपउत्तइ,मंत तंत जंताई, अशक्ति । २ औषध । 3 लोकमें आश्चर्यकारी । ४ नीच मनुष्योंने किये हुए । For Personal Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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