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इसलिये, हे देव!, दीजीए, बोधि (सम्यक्त्व ) । भवोभवमें, हेपार्श्व, जिनचंद्र ।।५। जयवंतेवत, हे वीतराग !, हेजगद्गुरु ! | उता, देव!, 'दिज्ज, 'बोहिं । भवेभवे, पास, जिणचंद ! ॥ ५ ॥ जय, 'वीराय !, जगगुरु ! | होवो, मेरेकुं, तुमारे. प्रभावसे, हे भगवन् !। संसारसे, वैराग्य, मार्गानुसारिपणा, इष्टफलकी, सिद्धि |१| लोक विरुद्धका त्याग । 'होउ, 'ममं, 'तुह, पभावओ, भयवं॥`भव, निव्वेओ, मग्गाणुसारिया, इफल, सिद्धी ॥१॥ लोगविरुद्ध, च्चाओ। गुरु (पूज्य), पुरुषोंकी, पूजा, परोपकार, करना, और । शुभ, गुरुका, मिलाप, उनके वचनकी, पालना । उमरभर अखंड हो । २ | गुरु, जण, पूआ, परग्थ्थकरणं, च। सुह, गुरु, जोगो, तव्वयण, सेवणा । आभव, मखंडा ॥२॥ जयवंते रहो, हे तीन भुवनमें, श्रेष्ठ, कल्पवृक्ष के समान !, जयवंतेवत, हे जिनोमें, धन्वंतरि (वैद्य) !। जयवंतेवत, हेतीनभुवन में, कल्याणके, खजाने !, जयति *जय, तिहुअण, वर, कप्परुख्ख !, 'जय, जिण धनंतरि ! | 'जय, 'तिहुअण, कल्लाण, कोस!, हुअण हेपापरूप, हाथिओंमें, समान ! । तीनभुवनके, जनोंसे, अविलंघित ३ आज्ञावाले, भुवनत्रय (३भुवन) के, स्वामी । करो, सुखोंको, जिनेश्वर "दुरिअ, करि, केसरि ॥ तिहुअण, जण, अविलंघिआण, भुवणत्तय, सामिअ।"कुणसु, "सुहाई, "जिणेस!, हेपार्श्व, स्तंभनकपुर में विराजमान | १| तुमको, समरतेहुए, पामते है, जल्दी, अच्छे, पुत्र, स्त्रियोंको । धान्य, सुवर्ण, आभूषणोंसे भरे हुए, `पास, 'थंभणयपुरनिय॥१॥ तइ, समरंत, 'लहंति, 'झत्ति, 'वर, पुत्त, कलत्तइ । धन्न, सुवन्न, हिरण्ण, पुण्ण,
जय
वियराय
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१ या मोक्ष प्राप्तितक २ रागद्वेषके जीतनेवाले । देवसी में पहले की ५ अंकी २ कुल ७, पख्खी चोमासी-संवच्छरीमें ३० गाथा कहना। ३ नहीं उल्लंघ सके बसी । ४खंभात ।
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* इति
प्राचीन
समाचारीमें
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