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________________ नमस्कारहो,अरिहंत, मिद्ध,आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधुओंकुं। नमोऽहतक नमो, ऽर्हत् ,सिहा,चार्यो,पाध्याय,सर्वसाधुश्यः। उपसर्ग हरनेवाला,पार्श्वयक्षकेस्वामी। पार्चप्रभुको,वांदताहूं,कर्मरूप,मेघसे',मुक्त (रहित)। विषधर(सर्प)के,जहरको,नाशकरनेवाले । मंगल(तथा) उबसगी रेउवसग्गहरं, पासं,। पासं, बंदामि, 'कम्म,घण, मुक्कं॥ विसहर विस, निन्नासं। मंगल हर स्तोत्र कल्याणके, आवास(घर) ।। विषधरके,स्फुलिंग नामक,मंत्रकुं । कंठमें, धारताहै, जो, सदा, मनुष्य । उसके,ग्रहपीडा,रोग,परकी( हैजा)। कल्लाण,आवासं॥१॥ विसहर, फुलिंग, मंतं । कंठे, धारेइ,'जो, सया, मणुओ॥ तस्स,गह,रोग,मारी। # दुष्ट,ज्वर(ताव),जाते(प्राप्तहोते) है,उपशांतिकुं ।। रहो, दूर, मंत्र। आपको(किया),प्रणामभी,बहुत,फलवाला,होताहै । मनुष्य,तिर्यंचोंमें, # दु, जरा, “जंति, उवसामं॥२॥ चिटउ, दुरे, मंतो। 'तुज्झ,पणामोवि बहु,फलो होइ॥ नर,तिरिएसु, भी, जीव । पाते हैं, नहीं, दुःख, दुर्भाग्यकुं ।३। तुमारा,सम्यक्त्व ,मिलनेपर । चिंतामणि, (तथा)कल्पवृक्षसे, अधिक। पातेहैं वि, जीवा। पावंति, न, दुख्ख,दोहग्गं ।३। तुह,सम्मत्ते,लहे। चिंतामणि कप्पपायव,ऽभिहिए॥'पावंति, के विना विघ्नसे । जीव, अजर, अमर,स्थानकुं।४। इसतरह,(आपकुं)स्तव है,हे महायशस्वी ! । भक्तिके समूहसे,भरपूर, हृदयसे(मैंने)। ॥१०॥ अविग्घेणं। जीवा,अयरा,मरं,ठाणं॥४॥इअ, संथुओ, 'महायस!। भत्तिाभर,निशभरेण, हियएण॥ 1 अथवा कर्म समुदायसे। २ आपको प्रणामसे। 3 आपमें भक्ति । ४ जरा मरण रहित । Jain Educat For Personal Private Use Only Camelibrary ord
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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