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आचारां. नादि बार।
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__नमो तेसिं खमासमणाणं जेहिं इमं वाइयं अंगबाहिरं [अंगोंसे बाहरके] नक्कालियं [ उन्कालिक श्रुतकुं]
भगवंतं,तंजहा-दसवेआलिय[दशवकालिककप्पिआकप्पियं [कल्पिकाकल्पिक चुल्लकप्पसुक्षुलु-छोटा-कल्पश्रुत] महाकप्पसुअं [महा-मोटा-कल्पश्रत नववाइयं [औपपातिक] रायप्पसेणियं (राजप्रश्नीय-रायपसेणी) जीवाभिगमो पन्नवणा (प्रज्ञापना) महापन्नवणा (महाप्रज्ञापना) नंदि [नंदिसूत्र अणुओगदाराई (अनुयोगद्वार) देविंदाथओ (देवेंद्रस्तव) तंदुलवेयालियं तदुलवैचारिक) चंदाविज्झयं (चंद्रावेध्यक) पमायऽप्पमायं (प्रमादाप्रमाद, परिसिमंडलं (पौरुषीमंडल) मंडलप्पवेसो (मंडलप्रवेश) गणिविज्जा (गणिविद्या विजाचरणविणिछओ (विद्याचरणविनिश्चय) झाणविभत्ती (ध्यान विभक्ति मरणविभत्ती(मरणविभक्ति) आयविसोही आत्मविशोधि) संलहणासुअं (संलेखनाश्रुत वीअरायसुअं वीतरागश्रुत विहारकप्पो (विहारकल्पचरणविसोही (चरणविशोधि) आनरपञ्चदखाणं आतुरप्रत्याख्यान) महापञ्चख्खाणं. महामन्याख्यान सव्वेहि पि एयम्मि अंगबाहिरे नक्कालिए ( उकालिक भगवंते.
ससुत्ते.सअत्थे. सग्गंथे. सनिज्जुनिए.ससंगहणिप में गुणा वा भावा वा अरिहंतेहिं भगवंतहिं पन्नत्ता २ जिनके जोगम कालग्रहण नहीं लि जाने .या विमात्रिकी कार कारटयरत के हिसाब सनी इममें पटा र के उन : ७ य औषपातिकादि चारमन्त्र ॐ के आसार है।
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