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पक्षके, जो,वांचाहो ,पढाहो(स्वयं),पगवर्ताहो२, पृछाहो, अर्थसंभालाहो, "शुद्ध पालाहो, वह, दुःख क्षयकेलिये, कर्म क्षयके"पख्खस्स', 'जं,वाइयं,पढियं,परियट्टियं,पुच्छियं,अणुप्पेहियं,अणुपालियं.तं.दुरुखख्खयाए,कम्मख्खलिये, मोक्षकेलिये, बोधिलाभकेलिये,संसारसे उतारनेकेलिये(होगा),इसवास्ते,अंगीकार करके, विहर(वर्त)ताहूं। अंदर, पक्षके, याए,मोख्खयाए,बोहिलाभाए,संसारुत्तारणाए, तिकट्ट,नवसंपजित्ताणं,विहरामि। अंतो,"पख्खस्स.
जो,नहीं वांचाहो, नहों पढा हो, नहीं परावर्ता हो, नहीं पूछा हो, नहीं अर्थ विचाराहो, नहीं शुद्ध पाला हो,होते हुए, बल के होते हुए, २"जं,न वाइयं, न पढियं, न परियट्टियं न पुच्छियं,नाऽणुप्पेहियं,नाऽणुपालियं, "संते, "बले, संते, वीर्य के, होते हुए, पुरुषाकार, पराक्रमके, उसको, आलोचते हैं, पडिक्कमते हैं. निंदते हैं, गर्हतेहैं, व्यतिवर्त्तनेह ,विशेष--
वीरिए,"संते, पुरिसकार, परक्कमे, तस्स,आलोएमो,पडिक्कमामो,निंदामो,गरिहामो,विनडेमो,विसोशोधते हैं,नहीं करनेपणेसे ,अभ्युस्थित(तयार)होते हैं,यथायोग्य११, तपःकर्मरूप,प्रायश्चित्तकुं, स्वीकारते हैं, उसका, मिथ्याहो मेरे दुष्कृत। हेमो, अकरणयाए, आभुट्टेमो, अहारिहं. तवोकम्मं,पायच्छित्तं,पडिवज्जामो,तस्स,मिच्छामि दुकडं।
१ दूसरोको पढायाहो । २ मूल मूत्रका पाठ कियाहो। ३ किसी बातका संदेह मिटानेकेलिये दूसरेको । ४ इस प्रकारसे । x चोमासोमें 'अंतो चोमासिअस्स' और संवच्छरीमें 'अंतो संवच्छरस्स' बोलना । ५ वांचने-पढनेआदि आचारको। ६ शरीरको ताकात । ७ आत्मबल । ८ पुरुषपणेके अभिमानरूप । ९ नहीं वांचने आदिके कारण (आलस्यादि)को तोडतेह । १० इन(नहीं वाचनाआदि) दोषों• अबसे नहीं करनेकी प्रतिज्ञासे । 1 छोटे या मोटे अपराधके लायक ।
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