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________________ தததத फफफफ * नीर्थंकरोंने, रति (काम), राग, द्वेषकुं. मथनेवाले, कहा है, प्रवचन (सिद्धांत) का सार छ जीव निकाय के संयमकुं उपदेश (क) के, "तित्थंकरेहिं, "रइ, राग, दोस, महणेहिं, "देसिओ, "पवयणस्स, सारो, छज्जीवनिकायसंजमं, नवएसिय, तीन लोकसे, सत्कारे हुए, (मोक्ष) स्थानकुं, अच्छी तरह प्राप्त हुए हैं। नमस्कार हो, आपको, हे सिद्ध २, हे बुद्ध !, हे मुक्त ४, हे नीरज ! तेल्लोक, सक्कयं, ठाणं, भुवया । "मोत्थु ते, "सिद्ध !, बुद्ध!, मुत्त !, नीरय !, हे निस्संग ६, हे मानको दलनेवाले. हे गुणरूप रत्नके सागर !, हे अनंत ( ज्ञानी) !, हे अप्रमेय ! नमस्कार हो, आप, महानू', महा (मोटे) वीर, निस्संग !, माणमूरण !, गुणरयणसायर! मणंत !, मप्पमेय ! नमोऽत्यु, "ते, महइ, महावीर, वर्द्धमान. स्वामिको । वज्रमाण, सामिस्स । नमोऽत्यु. ते अरहओ । नमोऽत्यु, खते, नमस्कार हो. आपको, अर्हन ( पूज्य ) होनेसे । नमस्कार हो, आपको, भगवान हो, इसवास्ते । महाव्रतोंकी, उच्चारणा, करली, (अब) इच्छते हैं, सूत्रकी, कीर्तना करना । महव्वय. उच्चारणा, कया. इच्छामो, सुत्त, कित्तणं, कानं । १] और वे तीर्थंकर । २ कर्मोकुं भस्म करके सिद्धहुए। ३ केवलज्ञानसे सब पदार्थ जाननेवाले ४ कमपिंजरसे छूटे हुए ५ कर्मबंधनरूप रजरहित । ६ स्त्री-पुत्रधनादिके संगरहित ७ छद्यस्थोंके ज्ञानसे जाननेने नहीं आनेवाले मोटे (मोक्ष) में करी है मति जिन्होंने ऐसे Jain Education International यह, निश्चय, भगवओ, तिकडु । एसा. खलु, For Personal & Private Use Only $559 ।।१३०॥ jainelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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