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1969
महाव्रत उच्चारणा, पांच प्रकारकी, बतलाइ है, रात्रिभोजनका, विरमण (त्याग), छठा है जिसमें, वह इसतरह है - सवत रहके, प्राणातिपात (हिंसा) से, महव्वय उच्चारणा, पंचविहा, पन्नत्ता, राइभोअण, वेरमण, छठ्ठा, तंजहा-सव्वाओ, पाणाइवायाओ, निवर्तना । सतरहके, मृपाबाद (झंटबोलने) से, निवर्तना २ । सब तरहके, अदत्तादान (न दिया लेने) से, निवर्तना ३। सबतरहके, वेरमणं सव्वाओ, मुसावायाओ, वेरमणं २। सव्वाओ, अदिन्नादाणाओ, वेरमणं ३ | सव्वाओ, मैथुन ( कुशील) से, निवर्तना ४ । सच तरहके, परिग्रह ( धनादि) से निवर्तना ५ । सवतरहके, रात्रिभोजनसे निवर्त्तना ६ । | मेहुणाओ, वेरमणं ४ । सव्वाओ, परिग्गहाओ, वेरमणं ५ । सव्वाओ, राइभोअणाओ, वेरमणं ६ ।
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हां, निश्चय, पहले, हे भगवन् !, महाव्रतमें, प्राणातिपात (हिंसा) से, निवर्तनाहै ३ । सवतर हके, हे भगवन् ! प्राणातिपातकुं पञ्चख्खता (त्यागता) हूं, 'तत्थ, खलु, पढमे, भंते!, महव्वए, पाणाइवायाओ, वेरमणं । सव्वं, "भंते !, पाणाइवायं पञ्चख्खामि, वे (जीव),मुक्ष्म, या, बादर, अथवा, त्रस, या, स्थावर ७, नहींज, ( मैं ) स्वयं, प्राणोंका, अतिपात (नाश) करूं, नहींज, दूसरोंसे, माणों का, अतिपात (नाश) से, सुहुमं, वा, बायरं, वा, तसं, वा, थावरं वा, नेव, सयं, पाणे, अइवाएज्जा, नेव, ऽन्नेहिं, पाणे, अइवायाकराऊं, प्राणों का, अतिपात करते हुए भी, दूसरों को, नहीं, अनुमोदूं (भलासमझं), जव तकजीवृंतवतक, विविध 'कुं, त्रिविध कर के, मनसे, वचनसे, कायासे, विज्जा, पाणे, अइवायतेवि, अन्ने, न, समणुजाणामि, जावज्जीवाए, तिविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं,
१गुरु उत्तर देते हैं। २ महानत उच्चारणाएँ । ३ऐसा भगवतने कहा हैं वास्ते । ४जो आंखसे देखनेमें न आवे । ५ जो देखने में आये । ६ वेइंद्रियादि। ७ स्थिर रहनेवाले। ८ प्राणातिपात ।
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