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परखरखा
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तीर्थकरोंको,और,संघको । अतीर्थसिद्धोंको,तथा, तीर्थसिद्धोंको,फेर । सिद्धोंको,और,केवलीयोंको ,तथा,साधुओंको।मोटे "साधुआं 'तित्थंकरे,अ,तित्थे। अतित्थसिद्धे,अ,तित्थसिद्धे,अ॥ सिडे, अ. जिणे, अ, रिसी। महरिसी, ज्ञानकुं, फेर, वांदताहूं ।। जो,इसकुं,गुणरूप,रत्नोंके, समुद्र। नहीं विराधके, तिरगयेहैंसंसारको । उनको ,मंगल', करके। नाणं, 'च, वंदामि॥२॥'जे, इम, गुण,रयण,सायर। मविराहिऊण,तिण्ण संसारा॥ ते.मंगलं,करित्ता।
मैंभी, आराधनाके, सन्मुखहूं ।२। मेरेको,मंगलहो, अरिहंत । सिद्ध, साधु, श्रुत(ज्ञान),और,(चारित्र)धर्म,फेर। शांति(क्षण), अहमवि आराहणा,ऽभिमुहो॥२॥मम,मंगल, मरिहंता । सिद्धा,साह, सुअं, च, धम्मो, अ॥ खंती, गुप्ति३,मुक्ति आर्जव(सरल)ता,मार्दव,निश्चय।३। लोकमें, संयमवाले,जिसकुं, करतेहैं। मोटे ऋषिने, कहीहुइ,उदार(अच्छी)। गुत्ती.मुत्ती । अजवया, महवं, चेव ॥३॥ लोगम्मि,संजया, जं, करिंति। परमरिसि,देसिय, मुआरं॥ मैंभी, उपस्थित(तयार)हूं,उस । महाबत उच्चारणाकुं,करनेकेलिये।४। अब२,कितने तरहकी,वह, महाव्रतउच्चारणाहै , अहमवि, उवठिओ, "तं । महव्वय उच्चारणं, काउं॥४॥ से, किं, तं,महव्वयउच्चारणं? १ तीर्थकरोंने तीर्थ (चतुर्विध संघ)की स्थापना करे पहले सिद्ध होनेवाले। २ उसी तीर्थकी स्थापना हुए बाद सिद्ध होनेवाले । ३ तीर्थ-अतीर्थ सिद्धोंको छोडके शेष 'गुडीलिंग सिद्ध' आदितेरे मेदसे सिद्ध होनेवाले। ४ केवलज्ञान पाये बाद इस मनुष्यभवमें विचरनेवाले 'भवस्थ केवलीयों को। ५ लब्धिवंत । ६ चारित्रकू । ७ मुनियोंको ८ वदनादिरूप। ९ चारित्रकी । १. निर्लोभता । 11 अभिमान रहित नरमाइ । १२ शिष्य पृछता है।
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॥१३३३॥
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