________________
॥ उकालो॥ वतरणां वारू वली य कमली पांच झिलमिल अति भली, स्थापनाचारिज पांच ठवणी मुहपत्ती पडपाटली। पत्र पाटी पंच कोथली पंच नवकारवालियां, इणिपरे श्रावक करे पचमी उजमणो उजवालियां ॥२॥ ढाल । वलि देहरे रे मात्र महोत्सव कीजिये,
घर सारू रे दान बली तिहां दीजिये। प्रतिमाजीने रे आगल ढोवणुं ढोइये, पूजानां रे जे जे उपगरण जोइये। उल्लालो।।जोइये उपगरण 5 देवपूजा काज कलश भृगार ए, आरति मङ्गल थाल दीवो धूपधाणुं सार ए। घनसार केशर अगर मूखड अंगलूहणा दीश ए, पंच - पंच सघली वस्तु ढोबो सगतिशुं पचवीश ए॥३॥ ढाल ॥ पंचमीनारे साहम्मी सर्व जिमाडिये, रात्रिजोगेरे गीत रसाल गवाडिये ।
इण करणीरे करतां ज्ञान आराधिये, ज्ञानदरिसणे रे उत्तम मारग साधिये। उल्लालो॥ साधिये मारग एह करणी ज्ञान लहिये निरमलो, 'मुग्लोक ने नरलोक माहे ज्ञानवंत ते आगलो। अनुक्रमे केवलज्ञान पामी सासता मुख ते लहे, जे करे पंचमी तप अखंडित
वीर जिणवर इम कहे ॥ ४॥ कलश ॥ एम पंचमी तप फल प्ररूपक वर्द्धमान जिणेसरो, में शुण्यो श्रीअरिहंत भगवंत अतुल
बल अलवेसरो। जयवंत श्रीजिनचंद मूरिज सकलचंद नमंसियो। वाचनाचारिज 'समयसुंदर' भगति भावे प्रशंसियो॥६॥ श्री गोडिज अमल कमल जिम धवल विराजे, गाजे गोडी पास । सेवा सारे जेहनी, सुर नर मन धरिय उल्लास ॥१॥ सोभागी साहिब मेरा बे,
अरिहां मुग्यानी पासजिणंदा बे।। ए आंकणी ।। मुंदर मूरति मूरति सोहे, मो मन अधिक मुहाय । पलक पलकों पेखतां मार्नु, नव स्तवन नवि छविय देखाय, ।। सोमा० । अ० ॥२॥ भव दुःख भंजन जन मन रंजन, खंजन नयन मुरंग । श्रवणे मुणी गुण ताहरा, 15 माहरा विकस्या अंगो अंग ॥ सो० अ०॥३॥दस्थकी हूँ आया वहिने, दवा लह्या दादार। पाथिया पहिडे नाह, साहिबा! एह उत्तम मा
आचार ॥ सो० अ० ॥ ४॥ प्रभु मुखचंद विलोकित हरखित, नाचत नयन चकोर । कमल हसे रवि देखीने, जिम जलधर आगम मोर ॥ सो० अ० ॥५॥ किसके हरिहर किसके ब्रह्मा, किसके दिलमें राम । मेरे मनमें तूं वसे, साहिव ! शिव सुखनो
F955555555555
আনাথ
Jain Education international
For Personal Private Use Only