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वडा
पंचमीका प्रणमुं श्रीगुरु पाय, निरमल ज्ञान उपाय । पंचमी तप भणुं प, जनम सफल गिणुं ए ॥१|| चउनीसमो जिनचंद,केवल ज्ञान दिणंद।
त्रिगडे गह गह्यो ए, भवियणने कह्यो ए ॥२॥ ज्ञान बहू संसार, ज्ञान मुगति दातार । ज्ञान दीयो कह्यो ए, साचो सर्दद्यो ए ॥३॥ ज्ञान स्तवन लोचन सुविलास, लोकालोक प्रकाश । ज्ञान विना पशु ए, नर जाणे किश्यु ए ॥४|| अधिक आराधक नाण, भगवती मूत्र प्रमाण । ज्ञानी
ॐ सर्वतु ए, किरिया देशत् ए ॥॥ ज्ञानी श्वासोश्वास, करम करे जे नाप । नारकीने सही ए, कोड चरस कही ए॥६॥ ज्ञान तणो
अधिकार, बोल्या मूत्र मझार । किरिश छे सही ए, पण पाछे कही ए ॥७॥ किरिया सहित जो ज्ञान, हुवे तो अति परधान । सोनो ने मरो ए, शंख दृधे भस्यो ए ॥८॥ महानिशीथ मझार, पंचमी अक्षर सार । भगवंत भाखियो ए. गणधर साखियो ए ॥२॥
पंचपी तप विधि सांभलो, जिम पापणे भव पारो रे। श्रीअरिहंत इम उपदिशे, भवियणने हितकारो रे ॥ ५० ॥१॥ मिगसर माह फागुण भला, जेठ आपाढ वैशाखो रे । इण पटमासे लीजिये, शुभ दिन सदगुरु साखो रे ॥ ५० ॥ देव जुहारी देहरे, फ गीतारथ गुरु वंदी रे । पोथी पूजो ज्ञाननी, सगति हुवे तो नंदी रे॥५०॥३॥ वे कर जोडी भावशू, गुरु मुख को उपवासो रे । पंचमी
पडिक्कमणो करो, पढो पंडित गुरु पासो रे॥ पं०॥४|| जिण दिन पंचमी तप करो, तिण दिन आरंभ टालो रे। पंनमी स्वन थुई कहो, ब्रह्मचारिज पिण पालो रे ॥
पं पांच मास लघु पंचमी, जावज्जीव उत्कृष्टीरे। पांच वरस पांच मासनी, पंचमी करो शुभ दृष्टि रे॥५०॥६॥ हिव भवियण रे पंचमी उजमणो मुणो, घर सारू रे वारू धन खरचो घणो । ए अवसर रे आवंतां लि दोहिलो, पुण्य जोगेरे है धन पामंतां सोहिलो ॥ उल्लालो । सोहिलो बलिय धन पामंतां पण धर्मकाज किहां वली, पंचमी दिन गुरु पास आधी कीजिये काउमस्सग रली । त्रण ज्ञान दरिसण चरण टीकी देइ पुस्तक पृजिये, थापना पहिली पूज केसर मुगुरु सेवा कीजिये ॥२॥ ढाल | सिद्धांतनी
रे पांच परत वीटांगणां, पांच पूठां रे मुखपल मूत्र प्रमुख तणां। पांच डोगरे लेखण पांच मजीसणां, वासकूपा रे कांची वारू बतरणां
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