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पाक्षिका _ 'नाणामि देसणंमि य, चरणमि तवंमि तहय विरियमि। आयरणं आयारो, इअ एसो पंचढ़ा दि अति
भणिओ ।। ज्ञानाचार १, दर्शनाचार २. चारित्राचार ३. तपाचार ४, वीर्याचार ५,एवं पंचविध चार १३० आचारमांहि अनेरो जे कोइ अतिचार पक्ष (चोमासी-संवच्छरी) दिवसमाहि सूक्ष्म बादर जाणता
अजाणतां हुओ होय ते सवि हु मन वचन कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं ।।
तत्र ज्ञानाचारना आठ अतिचार- काले विणए बहुमाणे,नवहाणे तह अनिन्हवणे । वंजणअन्य तदुभए,अविहो नाणमायारो।।ज्ञान कालवेलामांहि पढ्यो गुग्यो परावयों नहीं,अकाले
पध्यो, विनय हीन बहुमान हीन योग-नपधान हीन अनेरा कने पढ्यो अनेरो गुरु कह्यो,देव गुरु के वांदणे पडिकाणे सज्झाय करतां पढता गुणता कूडोअक्षर काने मात्राए अधिको ओछो आगल
पाछल भण्यो, सूत्र अर्थ तदुभय कूडा भण्या, भणीने विसार्या,तपोधन तणे धर्म-काजो अणन151 श्रावकके सम्यक्त्व सहित वारे अतों के १२४ अतिचारोंका जो संक्षेप वर्णन वदित्तने है वोही वर्णन यहां विस्तारसे हैं। २ इनमसे जो हो सो बोलना, दूसरे छोड
दना । ३ इस गाथामें ज्ञानके आठ आचारों के नाम हैं, उनमें जो प्रमाद हो. वह अतिचार है, दर्शनाचार चारित्राचारमें भी इसी तरह है, आगेभी अतिचारों के नामवाटी 卐 आधी गाथा या एक पद रखके अतिचागेका विशेष वर्णन कियाहै। ४ पड़नेके टाइम में । ५ मत्र अर्थ दोनु । तपस्या रूप धनवाले मुनिमज ।
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