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________________ मेरे, हेभगवन् ! ।१०। रासालुब्धक छंद। कुरु,जनपद(देश)में,हस्तिनापुरके,नरेश्वर(राजा)थे,पहले, बादमें, मोटे चक्रवर्तीके,भोगोंकुं, 'मे, भयवं! ॥१०॥रासालुडओ। कुरु,जणवय,हत्थिणानर,नरीसरो, पढम, तओ,महाचक्कवट्टि,भोए.. (ऐसे)महाप्रभाववाले । जो, बहोत्तर, घरवाले,उत्तम, हजार, श्रेष्ठ,नगरोंसेर,निगमोंसे युक्त,जनपद(देश)के,पतिथे, बत्तीस, राजाओंसे, के "महप्पभावो।'जो, बावत्तरि 'पुर, वर, सहस्स.वर, नगर, निगम, जणवय, वई.बत्तीसा, राय, उत्तम, हजार, अनुसराणे, मार्गवाले। चउदे, उत्तम,रत्नोंके, नव, मोटी,निधिओंके,चोसठ, हजार, अतिश्रेष्ठ,युवति(स्त्री)योंके,, वर, सहस्सा, २ऽणुयाय,मग्गो॥ चनदस,वर,रयण,नव,महा, निहि,चनसठ्ठी,सहस्स, पवर, जुवईण, मुंदर पति(और)। चौरासी, घोडे, हाथी,रथोंके, सौहजार(लाख), स्वामी, छन्नु, गामोंके, करोड, स्वामी, हुएथे, जो, सुंदरवई । चुलसी, हय,गय, रह,सयसहस्स,"सामी,छन्नवइ, गाम, कोडि,“सामी, आसी, जो, ॐ भरतक्षेत्रमें, भगवान् ।११॥ वेष्टक छंद । उन,समतावाले,शांति करनेवाले । अच्छे तिरेहुए, सब भयोंसे। शांतिनाथ, स्तवताहूं, "भारहम्मि,भयवं ॥११॥वेड्ढओ। तं, संति, 'संतिकरं। संतिण्णं, सव्वभया ॥ संतिं, थुणामि, + जिनकुं। शांतिकुं,करनेकेलिये, “मेरे ।१२। रासानंदितक छंद । इक्ष्वाकुवंशके,विदेह(देश)के,नरेश्वर,मनुष्यों में वृषभ५,मुनियों में वृषभ । जिणं। 'संति, विहेन, मे॥१२॥रासानंदिअयं। इख्खाग, विदेह,नरीसर,नर वसहा, मुणिवसहा। फि भोगवे,जिसमे । ४ नवमी दशमी गाथाम अन्वयोंके अंक एक साथ है। जिसमें कर(झुपी आदि)न लगते हो वैसे शहर । ३ व्यापारकी पीठवाले गाम । ४ वे शांतिजिन । ५ उत्तम । फफफफफफफफा ०६।। Jain Education national For Personal Private Use Only urwww.ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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