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निधि(खजाने)। शांति करनेवाले,प्रणाम करताहूं,दमनेमें उत्तम,तीर्थ करनेवाले। शांतिनाथमुनि,मेरेको,शांति, समाधिका वर,देनेवालेहो ।
निहिं॥ संतिकरं, "पणमामि, "दमुत्तम, तित्थयरं। 'संतिमुणि,मम,संति,समाहिवरं, दिसन 1E सोपानक छंद । श्रावस्तीके, पूर्वराजा, और,उत्तम,हाथीके,मस्तकजैसे,प्रशस्त(अच्छे), विस्तीर्ण,संस्थानवाले । स्थिर(मजबूत),सदृश सोवाणयं। सावत्थि,पुव्वपत्थिवं, च, 'वर,हत्थि,मत्थय, पसत्थ,विच्छिन्न,संथियं। थिर, सरिच्छ, वक्षम(छाती)वाले,मदोन्मत्त, लीला करतेहुए, उत्तम,गंधहस्तिके,प्रस्थान(चाल)से,चलनेवाले,संस्तव(स्तुति)के,योग्य । हाथीकी,मूढजैसे,बाहुवाले,
वच्छं, मयगल,लीलायमाण,वर,गंधहत्थि, पत्थाण, पत्थियं, संथवा, ऽरिहं। हत्थि,हत्थ, बाहुँ, तपायेहुए,कनकके,आभूषणतुल्य,निरुपहतस्वच्छ,पीले रंगवाले,अतिउत्तम,लक्षणोंसे,उपचितयुक्त,सौम्य,सुंदर,रूपवाले । श्रुति(कान)को,सुखदायी, धंत,कणग, रुअग, निरुवहय, पिंजरं, पवर, लख्खणो, वचिय,सोम,चारु,रूवं। "सुइ, सुह, मनको,भानंदकारी अत्यंत, रमणीय, उत्तम, देवदुंदुभीके,अवाजजैसी,मधुरतर(अतिमीठी),शुभवाणीवाले ।९। वेष्टक छंद । अजितनाथकुं,जीताहै, मणा,ऽभिराम,परम,रमणिज्ज,वर,देवदुंदुहि,निनाय, महुरयर, सुहगिरं॥९॥वेड्ढओ। अजिअं, जिया, (कर्म)शत्रुका,समूह जिन्होंने । जीताहै,सर्वभय जिन्होंने,संसार प्रवाहके.दुश्मन(ऐसे)। प्रणाम करताहूं, मैं, आदरसे । पापकुं, अतिशांत करो,
रि, गणं। जिअ, सव्वभयं, भवोह, रिनं ॥ ‘पणमामि, अहं,पयओ।"पावं, पसमेन, ॥१०॥ १ पांचों इंद्रियोंको जीतनेवाले । ४ चतुर्विध संघकी स्थापना। २ अयोध्याकाही दूसरा नाम है । ३ गृहस्थावस्थाके ।
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