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असंतोष अज्ञान
रूपा
शांति करनेवाला(ऐसे)। हमेशां मेरेको,निवृत्ति(मोक्ष)का, कारणहो,और,(किया नमस्कार ।। आलिंगनक छंद । हेपुरुषो!, यदि(जो),
संतिकरं। सययं,मम, निव्वुइ, कारणयं, च,"नमंसणयं ॥५॥ आलिंगणयं ।'पुरिसा!, जइ, दुःखके निवारणकुं। यदि, और, विशेष मांग(शोध)ते हो?(तो), सुखके कारणकुं । अजित(नाथ)के,शांति(नाथ)के,और, भावसे । अभयके दुख्खवारणं। जइ,'अ, विमग्गह ?, "सुख्खकारणं॥ अजिअं, 'संति, “च,"भावओ। अभ
अम- करनेवाले, शरणकुं, अंगीकार करो ।६। मागधिका छंद । अरति से,रतिसे,२अंधेरेसे.विशेषरहित,उपरत(रुके हुए,जरा(बुढापा),मस्णवाले। में यकरे, सरणं, पवज्जहा ॥६॥ मागहिया। अरइ, रइ,तिमिर,विरहिय, मुवरय, जर, मरणं।
देव,अमुरकुमार, सुवर्णकुमार,नागकुमार के,पतियोंने,आदरसे,नमस्कार कियेहुए। अजितनाथकुं, मैं भी, और,अच्छे न्याय नीतिमें, सुर, असुर, गरुल, भुयग, वइ, पयय, पणिवइयं ॥ "अजिअ, महमवि, य, 'सुनय नय, निपुण(हुशियार),अभय करनेवाले । शरण, जाकर, भूमि स्वर्गमें जन्मेहुओंसे ,पूजित, निरंतर, नजीक नमताहूं ७ संगतक छंद।
निनण, मभय करं। सरण,मुवसरिय, 'भुवि दिविज, महिअं, सयय, मुवणमे ॥७॥ संगययं। के उस,और, जिनोत्तमकुं, उत्तम, अंधेरेरहित,सत्व या सत्र,धरनेवाले । आर्जव(सरलता),मार्दव(नम्रता),शांति,विमुक्ति (निलेभिता),समाधिके,
तं, च, जिणुत्तम, मुत्तम,नित्तम, सत्त, धरं। अज्जव, महव, खंति, विमुत्ति, समाहि. ३ वैमानिक । ४ मुकुटमें गरुडके चिन्हवाले । ५ ज्योतिषि ब्यंतरदेव विद्याधर । इंद्रादिने । मनुष्य-देवोंसे । ८अत्यंत,अज्ञानके : ९शुभ ध्यानरूप अग्निमें कर्मोक् होमनेरूप भावयज्ञ ।
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