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छीका दि
दोष निवारण विधि
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आजत
शांति
स्वनन
தாகம்
श्रुतदेवी थुइक, बाद 'भवणदेवया करेमि कासगं अन्नत्थ० ' कहके १ नवकारका काउस्सग्ग, पारके " नमोऽर्हतः ज्ञानादिगुणयुartio" कहे, बाद क्षेत्रदेवीका काउस्सग्ग “यस्याः क्षेत्र समाश्रित्य ० " थुइ कहे, " नमोऽस्तु वर्द्धमानाय " की तीनों गाथा गुरु कहदे बाद सब कहे, स्तवनकीजगह अजिसंताकहे, देवसियपायच्छित खुद्दोत्रद्दव काउसग्गकरके प्रगटलोगस्स कहे बाद साधु खमा० देके 'इच्छा० सं० भ० ! असज्झाइय अणाउत ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूँ ?' गुरु कहे 'करेह' बाद 'इच्छं असज्झाइय० करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ० ' चार लोगस्स काउस्सग्ग, प्रगटलोगस्स कहे, सझाय चैत्यवंदन लघुस्तवनके स्थान में उवसग्गहरं स्तोत्रकहे, पडिक्कमणा पूराहुए वाद चक्क सायकाचैत्यवंदनादिकरे गुरुकी आज्ञासे एकश्रावक " नमोऽर्हत०" कहके वडिशांतिकहे, दूसरे सुणे सब दादाजीका स्तवन कहे ।
पख्खी चोमासी संवच्छरी पडिक्कम में पाक्षिकादि मुहपत्ती पडिलेहणसे पाक्षिकादि समाप्तितक छींक हो तो 'खुद्दोवद्दव ० ' के पहले या पडिक्कमणेके अंतमें खमा० 'इच्छा० सं० भ० ! अपशकुन दुर्निमित्तादि ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं ?, इच्छं अपशकुन अन्नत्थ०' १-२-३ नवकारके तीन काउसरग, उपर क्रमसे १-२-३ नवकार प्रगट कहना, बने सो विशेष तप पूजादि करना । देवी आदि पांचों visकमणोंमें विल्लि (मिनी) मंडल में आडि फिरे तो पक्किम के अंत में उपर लिखे मुजब तीन काउस्सग्ग करे, ater arrest बाद प्रगट तीन नवकार गिनके आगे लिखी गाथा तीन वेला कहे डावे पगसे तीनवार भूमिकुं दवावेजासा काली कब्बडी, अख्खहि कक्कडियारी । मंडलमांहे संचरी, हय पहिय मज्जारी |१| अजितनाथकुं,जीते हैं सत्रभयजिन्होंने ऐसे । शांतिनाथकुं, और, प्रशांत हुएहै, सब,गद (रोग), पाप जिनके ऐसे । जगत् के गुरु, शांतिरूप, गुणके, अजियं, 'जिअ सव्व भयं । 'संतिं, च, पसंत, सव्व, गय, पावं ॥ "जयगुरु, संति, गुण,
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