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________________ श्रावक 'इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे० वंदित्तु०' कहे, खमासमणा देके 'इच्छा० सं० भ० ! मूलगुण उत्तरगुण विशुद्धिनिमित्त काउस्सग्ग कर? गुरु कहे 'करेह' बाद 'इच्छं करेमिभंते ! इच्छामि ठामि काउस्सग्गं० तस्स उत्तरि० अन्नत्थ०' कहके पख्खीमें बारे लोगस्सका चोमासीमें वीस लोगस्सका संवच्छरीमें चालीस लोगस्स उपर एक नवकार काउस्सग करे, पारके प्रगट लोगस्स कहे, बैठके मुहपत्ती पडिलेटे. २ बांदणे, 'इच्छा० सं० भ०! समाप्तखामणणं अभ्भुट्टिओमि अभ्भितर०' इत्यादि पहले कहा वैसे खमावे, खमासमणा देके 'इच्छा० सं० भ०! परखी(चोमासी संवच्छरी) समाप्ति खामणा खामुं ।' गुरु कहे 'खामेह' श्रावक साथ हो तो गुरु कहे 'पुण्यवंतो! चार वार खमासमणा देइ तीन तीन नवकार कही पख्खी (चोमासी संवच्छरी) समाप्ति खामणा खामेह' साधु एक एक खमासमणा देतेहए जीमणा हाथ गुरुके सामे थापके "इच्छामि खमासमणो पियं च मे जं भे०" इत्यादि चार खामणे खामे, श्रावक तो खमासमणा देतेहुए मस्तक नमाके चार वेला तीन तीन नवकार गिणे, चोथे खामणेके अंतमें गुरु कहे 'नित्थारगपारगा होह' सब जणे कहे 'इच्छामो अणुसहि' एक साधु कहे 'इच्छकारि' भगवन् ! पसाओ करी परुखी(चोमासी संवच्छरी) तप प्रसाद कराओजी' गुरु कहे 'पुण्यवंतो! पख्खीके लेखे एक उपवास २ आंबिल ३ निवी ४ एकासणा ८ वियासणा दो हजार सज्झाय करी १ उपासनी पेठ पुरजो, (चोमासीमें ये उपवासादि सब दुगुणा और संवच्छरीम तिगुणाकहे) पख्खियं (चोमासिय संवच्छरियं) समत्तं देवसिथ भणिज्जाह' (पख्खी चोमासी संवच्छरी समाप्त देवसी भणजो) सबजणे कहे 'तहत्ति'। साधु आषाढ चोमासीम खमा० देके कहे 'इच्छा० सं० भ०! पीठकलग संदिसाउँ, गुरु कहे 'संदिसावेह' शिष्य 'इच्छं इच्छामि खमा० इच्छा० सं० भ० पीठ फउग पडिग्ग? गुरु कहे 'पडिग्गहेह'। कातिक चोमासीमें खमा० देके कहे 'इच्छा० सं० भ०? पीठफलग विसर्जु ?' गुरु कहे 'विसर्जेह'। दो बांदणे देके हपेशकी तरह देवसी पडिक्कमणा करे, परंतु मुयदेवीका काउस्सग्ग करके "कपलदल विपुलनयना" Jain Education international For Personal Pre Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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