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जं किंचि०' कहे, दो साधु बाकी रहते हो तो पख्खीमें तीन चोमासीमें पांच संवच्छरीमें सात साधुको खमावे, “इच्छा० सं० भ० पख्खियं (चोमासीयं वा संवच्छरियं) आलो?' गुरु कहे 'आलोएह' शिष्य कहे 'इच्छं आलोएमि जो मे पख्खीओ० (चोमासिओ० संवच्छरिओ०) बाद कहे 'इच्छा० संदि० भ०! पख्खी (चोमासी संवच्छरी) अतिचार आलोउं?' गुरु कहे, 'आलोएह,'
बाद 'इच्छं नाणंमि' इत्यादि अतिचार बोलके "सव्वस्स वि पख्खिय (चोमासिय संवच्छरिय) दुचिंतिय दुम्भासिय दुञ्चिठिय 5 इच्छाकारेण संदिसह (गुरु कहे पख्खीये 'चउत्थेण पडिक्कमह' चोमासीये 'छट्टेण पडिक्कमह' संवच्छरीये 'अट्टमेण पडिक्कमह')
इच्छं तस्स मिच्छामि दुक्कडं" बोली २ वाँदणे देके 'इच्छा० सं० भ०! देवसियं आलोइयं पडिकंतं पत्तेयखामणेणं अभ्भुटिओमि | अभ्भितर०' इत्यादि पहले कहा वैसा कहके सबकुं खमावे, २ वाँदणे देके 'इच्छा० सं० भ० देवसियं आलोइयं पडिकंतं पख्खियं | + (चोमासियं संवच्छरियं) पडिक्कमावेह' गुरु कहे 'सम्म पडिक्कमह' बाद पख्खी मूत्र बोलनेवाला साधु 'इच्छं करेमि भंते ! + इच्छामि पडिक्कमिडं (इच्छामि ठामि काउस्सग्गं) जो मे पख्खिओ (चोमासिओ वा संवच्छरिओ) अइयारो कओ०' कहके
खमासमणा देके 'इच्छा० संदि० भ०! पख्खी मूत्र (चोमासी सूत्र संवच्छरी मूत्र ) संदिसाउं?' गुरु कहे 'संदिसावेह' फेर 'इच्छं इच्छामि खमासमणो० इच्छा० सं० भ० ! पख्खीसूत्र (चोमासी सूत्र वा संवच्छरीमूत्र ) कई ?' गुरु कहे 'कवेह बाद तीन नवकार गिणके पख्खीमूत्र बोले, साधु नहीं हो तो एक श्रावक खमासमणा देके 'भगवन् ! मूत्र भणुं ?, इच्छं' कहके तीन नवकार गिणके पख्खीमूत्रके स्थानमें 'वंदित्तु मूत्र' कहे, मुणनेवाले 'इच्छामि ठामि काउस्सग्गं'के बाद 'तस्स उत्तरि० अन्नत्थ०' कहके काउस्सग्गमें खडे या बैठे हुए सुणे, अंतमें सबजने खडेहोके काउस्सग्ग पारके तीन नवकार गिणे, बैठके ३ नवकार ३ करेमिभंते !०, साध 'चत्तारिमंगलं० इच्छामि पडिक्कमिडं जो मे० इच्छामि पडिक्कमिउं इरियावहियोए० इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए' कहे,
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