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वशसे। चउदे, राज(लोक)में,भमतेहैं। उनकुं.मैंने. सबकुं, खमायेहैं। मेरेकुंभी, वे(सव), खमाओ ॥२४॥ १०वस। चउदह, राज, भमंत॥ ते, मे. सव्व, खमाविआ। मज्झवि, तेह, खमंत॥२४॥ पाक्षिका पख्खी चोमासी संवच्छरी पडिक्कमणेमें पहले देवसिक प्रतिक्रमण "जयतिहुअण" तीसोंमाथा चैत्यवंदनसे “वंदित्तु" समादि पति
सतक करके खमासमणा देके 'इच्छा० संदि० भ०! देवसिअं आलोइयं पडिक्कंतं पख्खी (या चोमासी वा संवच्छरी) मुहपत्ती क्रमण विधि
पडिलेहूं?' गुरु कहे 'पडिलेहेह, पुण्यवंतो! देवसीके स्थानमें पख्खी वा चोमासी या संवच्छरी भणजो, छींक जयणा करजो, मधुरस्वरे पडिक्कमजो, खाँसेसो विवरा शुद्ध खाँसजो, मंडलमें सावचेत रहेजो' इच्छं इच्छामि खमासमणो० देके मुहपत्ती पडिलेही २ वादणे, 'पख्खो वइक्कंतो' या 'चोमासी वइक्कंता' वा 'संवच्छरो वइक्कतो' इत्यादि जो हो सो बोलके 'इच्छा० सं० भ०! संबुद्धा खामणेणं अभ्भुटिओमि अभ्भितर पख्खियं (वा चोमासियं या संवच्छरीयं) खामेउ' गुरु कहे 'खामेह' मस्तके अंजलि करतो थको 'इच्छं खामेमि पख्खियं (चोमासियं-संवच्छरियं) एगस्स पख्खस्स पन्नरसण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राइणं जं किंचि अप्पत्तियं.' (एकही पक्षमें तिथि क्षयहो और अधिकभी हो वो उसी पक्षके १५ दिनकी गिनतीमें लेनेहें, उस पक्षमें क्षय न हो तो आगे पीछे १४ दिनकेपक्षमें १५ दिन कहनेसे अधिक गिनतीमें लेतेहैं वास्ते १६ दिन नहीं बोलतेहैं, अधिक मास नहीं हो तो चोमासीमें 'चउण्हं मासाणं अट्टहं पख्खाणं वीसोत्तर सयराइंदिआणं जं किंचि०' अधिक मास हो तो 'पंचण्हं मासाणं दसण्हं पख्खाणं पण्णासोत्तर सयराइंदिआणं जं किंचि०' संवच्छरीमें अधिक मास नहीं हुआ हो तो 'बारसण्डं मासाणं चवीसहं पख्खाणं तिनिसयसहि राईदियाणं जं किंचि०' अधिक मास हुआ हो तो 'तेरसण्हं मासागं छब्बीसह पख्खाणं तिनिसय नेउ राईदियाणं
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