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________________ 19555 55555555 हेभगवन् !, सामायिक। आज्ञा दो. हेज्येष्ठद्धआर्योसाधुओ। आज्ञादीजिये,हेपरमगुरो। मोटे,गुणरूप,रत्नोंसे, शोभित,शरीरवाले। भंते!,सामाइयं०३। अणुजाणह, जिठिज्जा,!। अणुजाणह, परमगुरु!।गुरु,गुण,रयणेहिं मंडिय,सरीरा। बहुत प्रतिपूर्ण हुइहै, पोरिसी। रात्रिके, संथारेमें,ठहरताहूं।१। आज्ञा दीजिये, संथारेकी । गुरुकहेबाहुको, उसिगेकरके,डावे,पासेसे(सोवे)। बहु पडिपुन्ना, पोरिसी। राइय,संथारए,ठामि।। अणुजाणह, संथारं। बाहु, वहाणेण,वाम,पासेणं ॥ के कुकुडिकीतरह',पगोंका,पसारना। २असमर्थहोतो,प्रमा(पूंजे),भूमिकुं३ ।। संकोचे(भेलेकिये),गोडोंवाले । पासाफेरतेहुए, और, शरीरकुं, कुकुडि, पाय,पसारण। अतरंत, पमजए, भूमि ॥२॥ 'संकोइय, संडासा। नव्वट्टते, अ, 'काय, म पडिलेहे । “द्रव्यादिका, उपयोग करे' । ६श्वासोश्वासकुं,सर्वथारोके,(द्वारादिको)देखे ।३। यदि(जो),मेरे,होजाय(तो),प्रमाद(मृत्यु)। इस पडिलेहा ॥ दव्वाइ,नवओगं। ऊसास, निरंभणा, ऽऽलोए॥३॥ 'जइ, मे, हुज्ज, “पमाओ। इमस्स, क शरीरका, इस, रात्रिमें। आहारकुं,उपधि(बथा),देहकुं। सब, त्रिविधकरके, वोसिरायाहै ।। आश्रव, कषाय, १०बंधन । देहस्सि, माइ,रयणीए॥ आहार, मुवहि, देहं । सव्वं तिविहेण,वोसिरिअं॥४॥आसव,कसाय,बंधण। १ उंचे अधर । २ इसतरह पगपसारनेमें या एक पासे सुणेमें । ३ बादमे पगपसारे या पासाफेरवे । ४ जागनेपर । ५ मैं कौन और केसाई ?, यानि साधुहूं या गृहस्थ ?, ऐसे 卐 विचारना 'द्रव्यउपयोग' मैं किस क्षेत्रमे हूँ?, ऊंचे मजले पर हूं? या नीचे भूमि पर ? ऐसा विचारना क्षेत्र उपयोग' में प्रमत्तभावरूप रात्रिम सृताहूं , या अप्रमत्तभावरूप का दिनमें वर्तताहं,ऐसा विचारना ‘काल उपयोग' इस समय मुझे मातरे आदिकी शंकारूप द्रव्यबाधा और राग द्वेषरूप भावबाधा है ? या नहीं ?,यदि है,तो कौनसी और कितनी है.' के ऐसे बिगारना भात्र उपयोग' है। ऐसा करने परभी निद्रा न हटे तो पोरिसौ भणानेवाला प्रतिज्ञा करता है । हिंसा-छुट चोरि कुशील परिग्रह ।९ कोध-मान माया लोभ ।१०राग-द्वेष । फफफफफफफफफफका -nindermational For Personal Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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