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कलह(लडाइ),अभ्याख्यान, परकी,परिवाद(निंदा)। अरति(बेचैनी),रति(खुशी),पैशुन्य(चुगली)। कपटसे,झूट बोलना,और.मिथ्यात्व ।
कलहा, भिख्खाणं,पर, परिवाओ॥ अरइ, रइ, पेसुन्न। माया, मोसं, च,मिच्छत्तं ॥५॥ वोसिरा(त्याग)दे, ये। मोक्ष मार्गके, संबंध, विनभूत (अंतरायरूप)। दुर्गतिके,निबंधन(कारण)। अट्ठारे, पापस्थानोंको ।।।
'वोसिरसु, इमाइं। मुख्खमग्ग,संसग्ग, विग्धभूआई ॥ दुग्गइ, निबंधणाइं। अठारस,पावठाणाई ॥३॥ के एकिलाहूं, मैं, नहीं है, मेरा, कोइ । नहींहूं,मैं,अन्य(दूसरे),किसीका। इसतरह,अदीन(प्रसन्न),मनवाला(होके)। (निज)आत्माको,सीखदेताहै
एगो,'ऽहं, नत्थि, मे,कोइ।'ना, ऽह,मन्नस्स कस्सइ॥ एवं, अदीण, माणसो। अप्पाण,मणुसासह ७ एकहै, मेरा, शाश्वताहै, आत्मा। ज्ञान, दर्शन, संयुक्त । बाकीके, मेरे, बाहरके, पदार्थ । सब, संयोग लक्षणवालेहै , ॥७॥ एगो, मे, सासओ, अप्पा।'नाण,दंसण,संजुओ॥सेसा, मे,बाहिरा,भावा। सव्वे, संजोगलख्खणा
संयोगके कारण,(मेरे)जीवने । पामीहै,दःखोंकी, परंपरा । उस(कारण से,संयोगके,संबंधक(मैने)। सब,त्रिविधकरके, F॥ संजोग मूला, 'जीवेण। पत्ता, दुख,परंपरा॥"तम्हा, संजोग, संबंधी सव्वं, तिविहेण,वोसिरिआ।
अरिहंत, मेरे, देवहै। जीबूं वहांतक, उत्तम साधु, गुरुहै। जिनेश्वरका,परूपाहुआ,तत्त्वहै । ऐसा,सम्यक्त्व,मैंने,ग्रहण कियाहै ।१० अरिहंतो, मह, देवो। जावज्जीवं, सुसाहणो गुरुणो॥जिण,पन्नतं. तत्तं। इय,सम्मत्तं मए गहिअं१० 1 झूटा कलंक देना। २ संयोगमात्रके है। : सत्य सिद्धांत है।
॥९॥
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