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चरित्रम।
84 द्यबद्धं-IN| एकोऽपि न विद्यते-नास्ति, तस्य-पुरुषस्य जन्म अजागलस्तनस्येव निरर्थकं-निष्फलं भवति त्निसार भाषायामप्युक्तम्२५॥
कंचन कामिनी कोय, काम नहिं आवे पछी। काल केरी फाल मांही, गयुं सह जाणजे ॥ चटक दिवस चार, भटके मृढ गमार । अन्तर विचार यार, सार सौ संभालजे ॥ बादल घटानी जेम, परिवार विखराये । चांदनी दिवस चार, अन्तर उतारजे ॥ आजकाल आश मांहि, मीत गयो काल तारो । पाप करी मूढ पछी, अधोगति मानजे ॥१॥
जन्म्यो जग ते जन जे निज काम तजी परमारथ काज कर । जन्म्यो जग ते जन जे निज प्राण थकी पर प्राण अधिक धरे । जन्म्यो वलि ते जन जेह थकी शुभ धर्म सुकर्म सदा पसरे ।
मनमोहन तो जन्मे न मरे निज ध्यान सुधारसता समरे ॥२॥ सायची सुखद होय मान तणो मद होय खमा खमा खुद होय ते तो कशा कामर्नु । जुवानी जोर होय एशनो अंकोर होय दोलतनो दोर होय ए ते सुख नामर्नु । वनिता विलास होय प्रोढता प्रकाश होय दक्ष जेवा दास हाय होय सुख धामर्नु । वदे रायचंद एम सद्धमने धायर्या विना जाणी लेजे सुख एतो वेएज बदामर्नु ॥ ३॥
॥२५॥
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