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________________ Jain Education सवि य सो चउहा ॥ १४ ॥ | जीवाण य विभत्ती ॥ १५ ॥ ठवणत्ति व होति एगट्ठा ॥ १३ ॥ सो तिह ओहे णामे सोत्तालावे य होइ बोद्धव्यो । तत्थोहो अविसेसो अज्झयणवण्णेउ जहा विहिणा तयणंतरमित्थ णामणिफण्णो । तत्थ य नामं अस्स उ जीवाअत्र च जीवाजीवविभक्तिरिति पदत्रयं वर्त्तत इत्येतन्निक्षेपायाह नियुक्तिकृत् — ॥ ५४९ ॥ ॥ ५५१ ॥ निक्खेवो जीवंमि अ चउवो दुहि होइ नायat | जाणगभवियसरीरे तवइरित्ते अ जीवदवं तु । भावंमि दसविहो खलु परिणामो जीवद्वस्स ॥५५०॥ निक्खेवो अ ( ( ) जीवंमि चउविहो दुविह होइ नायवो । | जाणगभविवसरीरे तबइरित्ते अजीवदवं तु । भावंमि दसविहो खलु परिणामो अ ( ( ) जीवदवस ५५२ निक्खेव विभत्तीए चउहि दुहि होइ दमि । जाणगभवियसरीरा तबइरित्ता य से भवे दुविहा | जीवाणमजीवाण य जीवविभत्ती तहिं दुविहा ५५४ ॥ ५५३ ॥ १ स्थापनेति च भवन्त्येकार्थाः ॥ १३ ॥ स त्रिधा ओवः नाम सूत्रालापकश्च भवति बोद्धव्यः । तन्त्रौघोऽविशेष : अध्ययनस्यापि च स चतुर्धा ॥ १४ ॥ वर्णयित्वा यथाविधि तदनन्तरमत्र नामनिष्पन्नः । तत्र च नामास्य तु जीवाजीवानां च विभक्तिः ।। १५ ।। ational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600068
Book TitleUttaradhyayani Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size19 MB
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