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________________ गिहवासं परिचजा, पब्वज्जामस्सिए मुणी । इमे संगे वियाणिज्जा, जेहि सजति माणबा ॥२॥ तहेव सिं अलियं, चोज अब्बभसेवणं । इच्छाकामं च लोभं च, संजओ परिवजए ॥॥मणोहरं चित्तघरं, मल्लधूवणवासियं । सकवाडं पंडरूल्लोयं, मणसावि न पत्थए ॥४॥ इंदियाणि उ भिक्खुस्स, तारिसंमि उवस्सए । दुक्कराइंतु धारेचं] निवारेउं, कामरागविवढणे ॥५॥ सुसाणे सुन्नगारे वा, रुक्खमूले व इक्कओ। पइरिके परकउ वा, वासं तत्थऽभिरोयए ॥६॥ फासुयंमि अणाबाहे, इत्थीहि अणभिहुए । तत्थ संकप्पए वासं, भिक्खू परमसंजए ॥७॥न सयं गिहाई कुग्विजा, नेव अन्नेहिं कारए। गिहकम्मसमारंभे, भूयाणं दिस्सए वहो ॥ ८॥ तसाणं थावराणं च, सुहुमाणं बायराण य । तम्हा गिहसमारंभ, संजओ परिवजए ॥९॥४ है तहेव भत्तपाणेसु, पयणे पयावणेसु य । पाणभूयदयट्टाए, न पए ण पयावए ॥ १० ॥ जलधन्ननिस्सिया जीवा, पुढवीकट्ठनिस्सिया । हम्मति भत्तपाणेसु, तम्हा भिक्खू न पयावए ॥११॥ विसप्पे सव्वओ धारे, बहुपाणविणासणे । नत्थि जोइसमे सत्थे, तम्हा जोई न दीवए ॥१२॥ हिरणं च जायरूवं च, मणसावि न पत्थए । समलिझुकंचणे भिक्खू, विरए कंयविक्कए ॥ १३ ॥ किणंतो कइओ होइ, विकिणतो अ वाणिओ। कयविक्कयंमि वट्टतो, भिक्खु हवइ तारिसो॥१४॥ भिक्खियव्वं न केयव्वं, भिक्खुणा भिक्खवित्तिणा। कयविक्कओ महादोसो, भिक्खावित्ती सुहावहा ॥१५॥ समुयाणं उंछमेसिज्जा, जहासुत्तमणिंदियं । लामालाभंमि संतुढे, पिंडवायं चरे मुणी ॥१६॥ अलोलो न रसे गिद्धो, जिम्भादंतो अमुच्छिओ।न रसहाए मुंजिज्जा, *************** *** *** Jain Education For Private & Personel Use Only Kiraw.jainelibrary.org
SR No.600068
Book TitleUttaradhyayani Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size19 MB
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