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________________ 53964-XAM रसा पगामं न हु सेवियव्वा, पायं रसा दित्तिकरा नराणं । दित्तं च कामा समभिवंति, दुमं जहा साउफलं व पक्खी ॥१०॥ जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे, समारुओ नोवसमं उवेइ । एविदियग्गीवि पगामभोइणो, न बंभयारिस्स हियाय कस्सई ॥ ११ ॥ विवित्तसिजासणजंतियाणं, ओमासणाणं दमिइंदियाणं । न रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥ १२ ॥ जहा बिरालावसहस्स मूले, न मूसगाणं वसही पसत्था। एमेव इत्थीनिलयस्स मज्झे, न बंभयारिस्स खमो निवासो ॥१३॥ न रूवलावण्ण|विलासहासं, न जंपियं इंगिय पेहियं वा । इत्थीण चित्तंसि निवेसइत्ता, द8 ववस्से समणे तवस्सी॥१४॥ अदंसणं चेव अपत्थणं च, अचिंतणं चेव अकित्तणं च । इत्थीजणस्सारियझाणजुग्गं, हियं सया बंभवए रयाणं ॥ १५ ॥ कामं तु देवीहिं विभूसियाई, न चाइया खोभइउं तिगुत्ता । तहावि एगंतहियंति नचा, |विवित्तवासो मुणिणं पसत्थो॥१६॥ मुक्खाभिकंखिस्सवि माणवस्स, संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे । नेयारिसर दुत्तरमत्थि लोए, जहत्थिओबालमणोहराओ॥१७॥ एए य संगा समइकमित्ता, सुहुत्तरा चेव हवंति सेसा।जहा महासागरमुत्तरित्ता, नई भवे अवि गंगासमाणा ॥१८॥ कामाणुगिद्धिप्पभवं खु दुक्खं, सव्वस्स लोगस्स सदेवगस्स । काइयं माणसियं च किंचि, तस्संतयं गच्छद वीयरागो ॥१९॥ जहा य किंपागफला मणोरमा, रसेण वन्नेण य भुजमाणा ते खुद्दए जीविय पच्चमाणा, एओवमा कामगुणा विवागे ॥२०॥ Jain Educati Miwww.jainelibrary.org o For Private & Personal Use Only nal
SR No.600068
Book TitleUttaradhyayani Part_3
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami, Shantisuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1917
Total Pages408
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size19 MB
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