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________________ सानत्कुमार चरित्र ।। ९८ ।। Jain Education International अन्वयः -- तत् दर्शन उद्भिन्न स्वेद बिंदु चय अंचितः कश्चित् अहो ! अयं संघट्ट धर्म:, इति अंतः स्मितान् सखीन् ऊचे. अर्थ:- तेणीने जोवाथी उत्पन्न थयेला पसीनाना बिंदुओना समूहथी भरेलो कोइक राजकुमार, अहो ! आ गडदीथी बकारो ( थाय छे) एम हृदयमां हांसी करता (पोताना) मित्रोने कहेवा लाग्यो. ॥ २४ ॥ निरीक्ष्य कुरङ्गाक्ष दृशं कोऽपि हृदि न्यधात् । तत्कालमिह कामेन क्षित्पं काण्डमिवेक्षितुम् ॥२५॥ अन्वयः --- कः अपि इह तत्कालं कामेन क्षिप्तं कोडं ईक्षितुं इव, तां कुरंगाक्षी निरीक्ष्य हृदि दृशं न्यधात् ।। २५ ।। अर्थ :- कोइक तो अहीं एकदम कामदेवे घोंची दीघेला वाणने जाणे जोवामाटे होय नही ! तेम ते हरिणाक्षीने जोड़ने (पोतानी) छातीवर दृष्टि करवा लाग्यो ।। २५ ।। एवं विकुर्वतामुर्वीपतीनामग्रवर्त्मनि । आनिनाय जया नाम प्रतिहारी पतिंवराम् ॥ २६ ॥ अन्वयः - एवं विकुर्वतां उर्वीपतीनां अग्र वर्त्मनि जयानाम प्रतिहारी पतिवरां आनिनाय ।। २६ ।। अर्थ :- एरीते चेष्टा करता एवा ते राजाओना अग्रभागमां जयानामनी प्रतिहारी ते स्वयंवरा कुमारिकाने लावी. ।। २६ ।। अनिवार्य तूर्यादि दर्शयन्ती धरापतीन् । इयमूचे विलोलभ्रूशृङ्गा शृङ्गारसुन्दरीम् ॥ २७ ॥ अन्वयः - अथ तूर्यादि निवार्य धरापतीन् दर्शयंती, विलोल भ्र शृंगा इयं शृंगारसुंदरीं ऊचे. ॥। २७ ॥ अर्थ:- पछी वाजिआदिकने बंध करीने राजाओने ओळखावती, तथा चपल भ्रुकुटिना अग्रभागवाळी ते शृंगारसुंदरीने कहेवा For Private & Personal Use Only 15% 64ত66 सान्वय भाषान्तर ।। ९८ ।। www.jainelibrary.org
SR No.600021
Book TitleSanatkumar Charitra
Original Sutra AuthorVardhmansuri
AuthorHiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationManuscript & Story
File Size12 MB
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